बरसू का त्याग, प्रयास व् बलिदान का बाद हमुन 9 नवम्बर 2000 मा अपणु पृथक उत्तरांचल राज्य पाई | 1 जनवरी 2007 माँ स्थानीय लोगों की भावनाओं थैं ध्यान मे राखी थै उत्तराखंड कु नाम आधिकारिक तौर पर उत्तरांचल सी बदली कीं उत्तराखंड करी छोऊ |
आज जबकि उत्तराखंड एक अलग राज्य बणी ग्ये तब भी हम्थैं आज वू राज्य नि मिली जैकू सुपना हम सब्बी न मिल कर देखि थोऊ | आज उत्तराखंड आठ साल कु ह्वै गे पर विकास का नाम पर उत्तराखंड मा कुई भी खास प्रगति नि होई | पृथक राज्य की मांग हमुन अपना पहाड़ व् पहाड़ का लोगो का विकास खातिर करी थोऊ परन्तु आठ साल ह्वै गैन पहाड़ अभी भी विकास का खातिर तरसाणु च |
उत्तरांचल राज्य गठन सि पैली प्रस्तावित उत्तरांचल राज्य म 17 विधायक था जू अब बढ़ी कें 70 ह्वै गैन तथा 1 विकास मंत्री होन्दु थोऊ जू अब बढ़ी कें 12 ह्वै गैन परन्तु विकास का नाम पर कुछ खास काम नि च होण लग्युं | स्थानीय जनता का अनुसार उत्तरांचल राज्य का गठन का बाद असली विकास त केवल नेताओ और धनवान लोगो कु ह्वै गरीब त वखि का वखि रै गैन |उत्तराखंड कु विकास व राज्य की वर्तमान स्तिथि मूल्यांकन हेतु आज भी हमारी टक्क कई मुद्दों व विषयो पर लगी च जू की अभी भी जनता की नजरू म अधूरी छन |
आठ साल म तीन बार सरकार बणी आर बदली चार मुख्यमंत्री ह्वेन पर विकास कु मुद्दा केवल घोषणा पत्र का काला आखारो म हर्ची ग्ये | आज हमारा समणी उत्तराखंड का विकास सी सम्बंधित कई यक्ष प्रशन खड़ा छन होया जौंकू उत्तर का प्रति उत्तराखंड की जनता आज भी प्रतीक्षा म खड़ी च | कुछ जरुरी प्रश्न ये प्रकार सी छन |
पहाड़ म रोजगार का खातिर युवाओ कु पलायन कब रुकलु
पहाड़ म बेहतर शिक्षा प्रणाली कब लागु होली
पहाड़ म हर गौं तक सड़क कब जाली
पहाड़ म पर्यटन कु वास्तविक विकास कब होलू
पहाड़ म स्वास्थ्य सुविधा कब आली
गैरसैण राजधानी अस्तित्व म कब आली
सबसी पैली मैं यख बात पलायन कि करदू , आज उत्तराखंड का शिक्षित युवा वर्ग रोजगार का आभाव म अपनी जन्मभूमि सी पलायन करणा कें मजबूर छ ,करण केवल एक रोजगार का साधनों की कमी | मैं कखी पढ़ी थोऊ की पिछला 10 वर्षु मा पहाड़ सी 12 लाख सी भी ज्यादा लोग पलायन करी ग्येन | निरंतर पलायन सी विकास पर असर पड़ण लग्य्नु छ अगर हम केवल सांसद तथा विधायक निधि पर विशेषण करू त ये वजह सी पर्वतीय क्षेत्र थैं लगभग १६ करोड़ रूपए सालाना नुकसान होनु चा । ई औसत सी प्रदेश की 4 हजार करोड़ की मानक विकास योजना कि बात करी जाए त पर्वतीय क्षेत्र थैं साल भर माँ 30 करोड़ रूपयों की हानि होणि चा । निरंतर पलायन सी असर जनसँख्या पर भी पड़ी और हमारा राज्य मा जह्संख्या का हिसाब सी आठ विधान सभा की सीट कम ह्वै ग्येन | लगभग 40 करोड़ रूपये की वार्षिक विधायक निधि जू की यौं आठ विधानसभा सीटो थीं मिलदी वै सी हम सबी वंचित ह्वै गयौं | पहाड़ सी पलायन कु असर पर्वतीय क्षेत्रो थैं मिलण वाळी योजनाओ पर भी पड़लू | हालाकि मैदानी क्षेत्रो मा कुछ बड़ा उधमियो न अपना प्लांट स्थापित जरुर करी छन परन्तु तब भी पहाड़ का युवाओ थैं रोजगार का अवसर अभी भी गिन्या -चुन्या छन | जरुरत च एक मजबूत निति बनौन की जैसी उत्तराखंड का मूल निवासियों कें वखि रोजगार मिलो और पहाड़ का लोग पलायन का वास्ता मजबूर न हो सक्या |
उत्तरांचल राज्य गठन का बाद मैदानी भाग व पहाड़ी कस्बो मा शिक्षा का स्तर म सुधार अवश्य आई ,आज पर्वतीय शहरी क्षेत्रो मा कै जगह पब्लिक स्कुल भी खुलीं ग्ये लेकिन गरीब आदमी आज भी अपणा बच्चो कें वख नि पढै सकदु परन्तु राज्य का दूर दराज का पहाड़ी क्षेत्रो व गावो मा अभी भी शिक्षा कु स्तर नुय्नतम छ | राज्य का ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रो मा अभी भी कई विद्यार्थी अपना घर सी 5-6 किलोमीटर दूर स्कुल जांदा छन | स्कुलो मा शिक्षो व जरुरी संसाधनों की कमी छ | मैन कई बार यां भी देखि की स्कुल मा अध्यापक अपना कर्तव्य सी ज्यादा अपना होळ-तंगलू व घर का काम काज मा ज्यादा व्यस्त रंदा छन |शिक्षा की ही बात ली लयवा 250 सी भी ज्यादा गांवों का बच्चों थैं जूनियर हाई स्कूल माँ पढ़ना का वास्ता चार-पॉँच कि.मी. सी भी दूर जणू पड़दू | सरकारी आंकडो अनुसार 2500 का लगभग गांवों माँ सीनियर बेसिक स्कूल , 7500 का लगभग गांवों माँ सीनियर स्कूल व 3600 गावों का बच्चो थैं हायर सेकेण्डरी स्कूल चार-पॉँच कि.मी. सी भी दूर छ | अब हम सभी सिच सकदा छन की राज्य म बच्चो की शिक्षा कु विकास कन कै हो सकदु |सरकारी आंकडो का अनुसार राज्य गठन का आठ साल बाद भी उत्तराखंड राज्य माँ निरक्षरों की संख्या कुल 84 लाख की आबादी माँ सी 33 लाख 83 हजार 567 छ | यनी बेरोजगारों जनता की संख्या सात लाख तक ह्वै ग्ये |
अब मी बात प्रस्तावित राजधानी गैरसैण का मुद्दा पर करण चांदो जू की आज भी अधर म लटकी छ | परन्तु एक लंबा संघर्ष का बाद जब हमारी आँखी खुली त हमुन अपना सपुना बिखरदा देखि , राजधानी का नाम पर हम्थैं गैरसैण का बदला देहरादून देखणा कु मिली | यदि हम पहाड़ कु विकास चांदो त राजधानी भी पहाड़ म होई चैन्दि न की मैदानी भाग म | वन त राजधानी की घोषणा सन 1992 म उक्रांद नेता श्री कशी सिंह ऐरी जी ने करी थाई पर आज वर्तमान सरकार म सहभागी होणा का बाद भी उक्रांद आज अपणु वादू भूली ग्ये | सभी सरकारू का घोषणा पत्र म राजधानी कु मुद्दा विशेष मुद्दा थोऊ पर आज कुई भी पार्टी गैरसैण कें राजधानी नि बन्ये सकी |कैन या बात सच बोली च की राजधानी कु मुद्दा अब अंगद कु पाँव ह्वै गी जैके देहरादून सी हिलौंण असंभव छ |मैन एक लेख कखी पढ़ी थोऊ जैक अनुसार कि पर्वतीय राज्य की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र माँ ही होणी चैन्दि ताकि वाख का लोगु का उत्थान का वास्ता कार्य किए जा सकू | अगर जू पर्वतीय राज्य की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र माँ होली त येन सारा क्षेत्र कु विकास अफी ह्ववे होण लगलू । आज जू इस पहाड़ी क्षेत्र सी रोजगार की तलाश माँ पहाड़ सी पलायन च होण लग्य्नु वू ऐके रोकना माँ काफी कारगर सिद्ध होलू तबई लोग वाख रुकी सकदा | ऐकू समाधान कु एक तरीका और भि ह्वै सकदु जन कि हिमाचल तथा जम्मू कश्मीर का जन भी व्यवस्था ह्वै सकदी कि राजधानी छह माह गैरसैंण में राली और छह माह देहरादून माँ । ई युक्ति सी पहाड़ी क्षेत्र की उपेक्षा भि नि होली अर पहाड़ी राज्य की सार्थकता भी साकार सकदी | समय समय पर कै संगठन गैरसैण राजधानी का मुद्दा पर आन्दोलन व रैली करदा रंदा , सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र पूर्व से पश्चिम तक वर्तमान समय माँ अशांत होणु चा | भगवन जाणु कखी यु भि एक बदु जन आन्दोलन कु रूप न लिले और हुम्थें एकी भरी कीमत चुकाण पड़े । जैमा मात्र उत्तराखण्ड और हिमाचल द्वी राज्य छन जख अभी तक यन काली छाया नि पड़ी । जन मानस का मनु थैं शांत रखणा का नजरिया सी भी पर्वतीय क्षेत्र की राजधानी स्थायी रूप से आन्दोलन का प्रतीक मन्यि तथा प्रदेश की जनता माँ सर्वमान्य भाव सी स्वीकृत गैरसैंण थैं ही राजधानी बणोंण ठीक हुलु |
राज्य सरकार का आंकडा
उत्तराखण्ड राज्य स्थापना थैं आठ साल पुरा ह्वै गयेन | प्रदेश कि राज्य सरकार का अर्थ एवं संख्या विभाग का आंकड़ों का अनुसार प्रदेश माँ आज भि गरीबी की सीमा रेखा सी निस जीवन यापन करण वाल परिवारू की संख्या छ: लाख तेईस हजार 90 तक पहुंच ग्ये | राज्य गठन का समय ई संख्या तीन लाख 75 हजार का करीब थै । मतलब आज गरीबी दुगनी ह्वै ग्ये | उत्तराखण्ड की 3800 सि भी ज्यादा गाव घोर पेयजल संकट सी तथा १२ हजार सी भी ज्यादा गाव आंशिक पेयजल संकट सी जूझाणा छन | राज्य सरकार का आंकडा बातौंद छन कि उत्तराखंड राज्य का अस्तित्व माँ औण का बाद भी उत्तराखण्ड का कई गांवों माँ लोगों थैं एक भांडू पानी का खातिर कैए कोस दूर जणू पड़दू | यनी लगभग 8700 गांवों माँ ऐलोपैथिक अस्पताल भी पांच कि.मी. सी भी ज्यादा दूर छा | उत्तराखंड में सड़क मार्गो आज भी विकास कु बाटू देखणा छन | राज्य की कुछ सड़क बहुत अच्छी स्तिथि मा छन परन्तु ग्रामीण व दूर दराज का क्षेत्रो मा आज भी सडको की हालत बहुत ख़राब छ | हलाकि पिछला आठ वर्षु मा विभ्भिन सड़क योजनाओ का मध्यम सी बहुत गावो मा सड़क पौंची छ लेकिन डामरीकरण आज भी नि ह्वै | हम रोज सुणदा रंदा की आज फलाणी-फलाणी जगा दुर्घटना ह्वै ,कारण एक छ सड़क्यो की ख़राब हालत | आज भले ही उत्तराखंड मा गाव-गाव मा सड़क आगे होली परन्तु उनकू ढंग सी रखरखाव का आभाव मा हालत और भी ख़राब ह्वै ग्येन |2200 गांव यां छान जू कि आज भी पक्की सडक़ों सी दूर छान और उनमें लगभग 900 गांव यं छान जू कि सडक़ से 30 कि.मी. से अधिक दूर छन । 3000 गांवों माँ बस स्टाप आज भी पांच कि.मी भी ज्यादा दूर छा | रेलवे स्टेशन तो 15000 का लगभग गांवों की पहुंच सी दूर छा |
" उत्तराखंड में पर्यटन कु विकास आज भी लगी छ आस " आठ बर्शु बाद भी उत्तराखंड मा प्रस्तावित वीर चन्दरसिंह गढ़वाली पर्यटन विकास योजना ठीक ढंग सी कार्यान्वित नि ह्वै सकी | आज भी पर्यटन का विकास सी सम्बंधित कै व्यावहारिक दिक़्कतें समणी छन | विभ्भिन योजनाओ का अनुसार आज मात्र 10% ही काम पर्यटन का विकास का क्षेत्र मा होई 90% काम अभी भी बाकी चा | ई बात जग जाहिर छ की उत्तराखंड मा पर्यटन की सम्भावनाये आपर छन परन्तु सरकार ये मामला मा अभी जागरूक नि चा | यदि पर्यटन स्थलों कु विकास होलू और नई नई जगहों की खोज होली तभी उत्तराखंड मा पर्यटन कु विकास सम्भव छ | जब राज्य मा नए होटलों, झीलों, हवाई पट्टियों ,क्रीडा-स्थलों कु निर्माण सडको, मंदिरों व संस्कृतिक धरोहरों कु रख रखाव हुलु तभी सही अर्थो मा विकास सम्भव छ | पर्यटन का विकास होलू त रोजगार भी घररय्या बिरालु सी पिछने पिछने आलू |
उत्तरांचल मा आठ वर्षु बाद भी स्वास्थ्य सुविधाए न का बराबर छन हलाकि सरकार का प्रयास सी राज्य मा 108 एम्बुलेंस सेवा की शुरआत ब्लाक स्तर पर ह्वै छ परन्तु दूर दराज का पहाड़ी गाव आज भी यां सुविधाओ का आभाव मा मरणा छन | सरकार बेशक स्वास्थ्य सुविधाओ कु विस्तार की बात करू पर सच्ची बात सब जाँणदा की असल मा जरुरतमंद लोग अभी भी ये सुविधा का लाभ सी दूर छन | पहाड़ी क्षेत्रो मा भौत सी महिलाये प्रसव पूर्व उपचार का आभाव मा काल कु ग्रास बन जांदी | राजकीय चिकित्सालयों मा दवाइयों व डाक्टरों कु आभाव छ | स्वास्थ्य सुविधाओ कु विस्तार केवल शहर व कस्बो तक ही सीमित छ | उत्तराखंड की तक़रीबन समस्त अर खास कर ग्रामीण, गरीब और पहाड़ी जन समुदाय पूरी तरह सी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर निर्भर छ और सरकार 50% अस्पतालों माँ डाक्टर उपलब्ध नि छ करै सक्नी । उतरांचल बणन सी पैली भी पहाड़ माँ सबसे बड़ी समस्या स्कूलों म शिक्षकों और अस्पतालों माँ डाक्टरों अर दवाई कि कमी कि वजह सी थै |
अगर हम सब अपना उत्तराखंड थैं वास्तव माँ विकसित, खुशहाल व प्रगतिशील बनौण चांदा त हम सभी थैं एकजुट ह्वै कें प्रयास करणु पड़ोलो | आज बड़ी खुशी की बात ई च की उत्तराखंड का लोग विभ्भिन क्षेत्रो मा तथा विभ्भिन गैर सरकारी संगठनो का माध्यम सी वखा का जन समुदाय का खातिर प्रयासरत्त छन व समाज सेवा मा अपनी भागीदारी निभौना छन | निष्कर्ष का तौर पर आज उत्तराखंड मा विकास कार्य होणु त छ पर मंद गति सी | विकास कार्य तभी तीव्र गति सी ह्वै सकदु जब हम सब जागरूक बणु तथा नियोजित योजनाओ पर नजर रख सक्या |
कुछ जरुरी कदम उठौन पडला तब जै कें कुछ प्रगति व विकास ह्वै सकदु |
रोजगार का क्षेत्र मा :- जन की पीली भी मैं लिखी की रोजगार का आभाव मा आज शिक्षित युवा वर्ग अपणी मिटटी छोड़ी कें शहर मा पलायन करना का वास्ता मजबूर छन | सरकार कें ये विषय पर रोजगार निति बनोंण पडली ताकि योग्यता का हिसाब सी सबु कें रोजगार उपलब्द ह्वै सकू |
कृषि का क्षेत्र मा :- हमारा पहाडो मा जमीन आज भी हम पारंपरिक खेती करदा छन | उत्तराखंड मा जलवायु और मिटटी जैविक व आधुनिक खेती का वास्ता अति उत्तम चा |आज भी 90% लोग रासायनिक खाद कु उपयोग करणा का बजाय गोबर की खाद कु प्रयोग करदा छन | आज हम अगर फल, सब्जी, दाले, तिलहन, सोयाबीन, कपास, अदरक, हल्दी ,लहसुन, मशरूम, व जडी-बूटी की खेती करा त हम आत्म-निर्भर बणी सकदा | उत्तरांचल राज्य की विविध जलवायु तथा विभिन्न ऊंचाई वाला क्षेत्रों थैं ध्यान माँ राखि थैं सरकार न प्रदेश स्तर पर कृषिकरण का वास्ता करीब 26 महत्वपूर्ण प्रजातियों क्रमशः अतीस, कुटकी, कूठ, जटामांसी, चिरायता, वनककड़ी, फरण, कालाजीरा, पाईरेथ्रम, तगर, मंजीष्ठ, लेमनग्रास, बड़ी ईलायची, पत्थरचूर, रोजमेरी, जिरेनियम, सर्पगंधा, कलिहारी, सतावर, स्टीविंया, सीलिबम, पीपली, अमीमेजस, तिलपुष्पी, कैमोमाईल व ब्राम्ही चयनित की है | ई योजना का अंतर्गत कश्ताकारू थैं अनुदान भि दिए जालू |उंका उत्पाद की निकासी एवं विपणन थैं सुगम बनौन तथा प्रदेश स्तर पर डाटाबेस तैयार कारन का वास्ता काश्तकारों कु पंजीकरण की व्यवस्था भी करी च । ताकि आम जनमानस का साथ-साथ काश्तकारों कें भी वैकु समुचित लाभ मिली सकू |
अब देखा सरकार न त व्यवसायिक कृषिकरण द्वारा जड़ी-बूटियों का उत्पादन थैं बढ़ावा देण की दिशा माँ प्रयास शुरू करी छन , अब इ प्रयास कख लिजंदा आप भि देखिं |
पहाड़ मा पशुपालन, मतस्य पालन, मुर्गी पालन, मधुमख्खी पालन, जडी-बूटी व ओषिधि कृषि कु कार्य न का बराबर होन्दु |यदि ये क्षेत्र मा उचित मार्गदर्शन व सरकार द्वारा अनुदान देणा की योजनाओ कें सुलभ बनये जाऊ त यौन क्षेत्रो मा भी प्रगति ह्वै सकदी और स्व- रोजगार की सम्भावनाये भी उपलब्ध ह्वै सकदी | मैं कई जगा देखि की नेपाली लोग पहाड़ मा लुकारा पुन्गाडा मा व फल, सब्जी, दाले, तिलहन, सोयाबीन, कपास, मशरूम, व जडी-बूटी की खेती करी कें बहुत पैसा छन कमौना | यदि लोग भैर बीती अई कें हमारी जमीन पर आधुनिक खेती कर सकदा त हम किले नि कर सकदा ?
आज पहाड़ की हालत यां ह्वै गी की लोग देखण कु भी नि मिलदा | जू लोग वख छन (सरकारी कर्मचारियों छोड़ी कें ) वू भी कुछ कुछ खास काम नि करदा बस दिन भर ताश खेली रुमुकी दारू पीणा छा | वन त प्रधानमंत्री रोजगार योजना मा कध्यम सी आज लगभग सभी लोग विभ्भिन योजनाओ मा काम छन करणा परन्तु पहाड़ मा दारू कु दानव आज बहुत लोगु पर हावी च | अपनी सब करी -कमाई दारू मा छन उडौना | पहाड़ की महिला कु जीवन आज भी वखि छ जख पीली छा | आज पंचायती राज मा महिलाओ थैं हलाकि 50% की हिस्सेदारी छा परन्तु ऊन भी क्या कन्न अपणु घर कु काम कन्न या राजनीती मा योगदान देण | आज भले ही वर्तमान पंचायात चुनावु मा महिलाये 55% विजयी ह्वैन परन्तु पुरूष प्रधान समाज मा आज भी वो अपनी शशक्त आवाज नि उठाई सकदी | जरुरत च जागरूकता की ,महिलाओ थैं पुरु सम्मान व अधिकार देणा की |
पहाड़ का वास्तविक विकास तभी ह्वै सकदु जब पहाड़ की जनता जागरूक हो | सुचना कु अधिकार कु प्रयोग करी वो थैं अपनी ग्राम-पंचायत व सभी सरकारी योजनाओ का बारा मा पूछ सकदी ,जैकी की पहाड़ मा भरी कमी छा |
आज जरुरत छ निस्वार्थ भावः: व समर्पित भावः सी एकजुट ह्वै काम करणा कि तभी हम्थैं हमारू सुप्नियो कु विकसित व खुशहाल उत्तराखण्ड मिल सकदु जैकू सुपना हमुन व हमारा अमर शहीद भाई बैणी न देखि थूऊ |त आवा अपना समर्थ का अनुसार प्रयास करा अर अपना सुप्निया सच होंदा देखा |
जय बद्री बिशाल : जय उत्तराखण्ड
विजय सिंह बुटोला
दिनांक : 11-12-2008
यह ब्लॉग मेरे द्वारा लिखी गयी कविताओं का संग्रह है जिसमे विशेष रूप से गढ़वाली तथा हिंदी कविताये शामिल हैं | मुझे कवितायेँ लिखना अतिप्रिय है |
Friday, December 12, 2008
Saturday, December 6, 2008
यंग उत्तराखंड द्वारा आयोजित दो दिवसीय निशुल्क: स्वास्थ्य परीक्षण शिविर (प्रतापनगर, टिहरी गढ़वाल)
दोस्तों, यंग उत्तराखंड द्वारा आयोजित दो दिवसीय निशुल्क: स्वास्थ्य परीक्षण शिविर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद के प्रतापनगर ब्लाक में दिनांक 29-30 नवेम्बर 2008 को किया गया |मैं इस कैम्प को लेकर बहुत पहले से ही अत्यन्त उत्साहित था आख़िर वो घड़ी, दिन भी आ गया जब मैं घर से इस अविस्मरणीय यात्रा के लिए निकल पड़ा |
इस टीम में जाने वाले सदस्य थे
श्री पुर्नेंदु सिंह चौहान, श्रीमती पूनम चौहान, श्री विपिन पंवार, श्री विजय कुकरेती, श्री विजय सिंह बुटोला, श्री सुशील सेंदवाल , श्री मनीष कुमार, श्री आशीष पंथारी, श्री बलबीर राणा
कैम्प की तैयारी
मैंने 28-11-2008 को आफिस से छुट्टी ले ली थी | सारा दिन अपनी श्रीमती जी के साथ घर के काम-काज निपटाने के बाद मैंने रास्ते के लिए थोड़ा भोजन बनाने की तैयारी की | आलू उबाल के जख्या में छौंक लगा कर मैंने आलू के गुटके बनाये | आलू के गुटको को छौंकने के साथ साथ मैंने गौं की लाल मिर्च भी तली (भुन्टी मर्च)| मैंने भी अपनी श्रीमती जी के साथ पूरिया बनाई व् सलाद भी बनाया |
यात्रा का शुभारम्भ
जैसा की पूर्वनिर्धारित था की सब शाम 7:30 पर कश्मीरी गेट बस अड्डे पर एकत्रित होंगे | गाड़ी सभी को लेकर वही से जायेगी | सबसे पहले हमारे बीनू भाई जी शाम 7:00 बजे कश्मीरी गेट बस अड्डे पर पहुचे ,फिर विपिन भाई जी व् सुशील सेंद्वाल फिर मैं भी 7:15 पर पहुच गया | अब इंतजार था हमारे यंग उत्तराखंड की महान हस्ती महान लेट-लतीफ श्री श्री 108 पुर्नेंदु चौहान जी का , तो वो भी अपनी श्रीमती जी (श्रीमती पूनम चौहान जी ) व साथ में हमारे होने वाले भावी C.A साहब श्री मनीष कुमार जी के साथ ठीक 8:00 बजे पहुचे | वैसे तो ड्राइवर भी गाड़ी लेकर 8:10 पर आया था इसलिए साहब जी को बचने और बोलने का अच्छा मौका मिल गया था | इनकी प्रतीक्षा करते करते हम सभी के गले सूख गए थे सो हमने एक दो लीटर की कोक की बोतल ली और अपनी प्यास बुझाई | आप सब जानते हो दोस्तों , क्योंकि ये दिल मांगे मोर |
अब चली गाड़ी जिसमे सवार थे बीनू भाई जी और सुशील सेंद्वाल जी सबसे आगे ड्राइवर के साथ | बीच में हमारे साहब जी और मेमसाहब जी | पीछे की सीट पर हम बेचारे -हालात के मारे विपिन भाई और मैं |दिल्ली से चलने से पहले हमें गाड़ी में डीजल भरवाया फिर आशीष पंथारी जी ने हमें मोहननगर के गाजियाबाद -मेरठ रोड के मोड़ पर मिलना था सो हमने उनको वहा से 9:30 पर पिकप कर लिया | बेचारे पंथारी जी हमारा इंतजार वहा पर पिछले दो घंटे से कर रहे थे |
रास्ते में पहाड़ी गानों का आनंद लेते हुए हमने मुजफ्फर नगर तक का सफर काटा | मुजफ्फर नगर में हमने खाना खाया | जैसा की मैंने पहले बता की मैं भी घर से थोड़ा खाना लाया था और पुर्नेंदु भाई जी भी घर से मेथी के मजेदार परोंठे और नमकीन लाये थे सो हम सभी ने कुछ और खाने का आर्डर दे कर वह सब खाना मिल कर खाया |खाना खाकर हम गाड़ी में बैठे और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े |
रास्ते की कठिनाइया
अभी थोडी दूर ही सफर तय किया था की मंगलौर के पास उत्तरांचल-उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर हम जाम में फँस गए | हमारे साथ कुछ इसे महानुभाव भी थे जिनको यह पता ही नही चला की हम दो घंटे से जाम में फंसे पड़े हैं .............क्योंकि वो तो सोने में मस्त थे | करीब दो घंटे के इंतजार के बाद जैसे -तैसे जाम खुला तो हम फिर अपनी आगे की शेष यात्रा को पुरा करने हेतु निकल पड़े | मेरी धर्मपत्नी जी ने जो कम्बल मुझे सर्दी से बचने के लिए दिया था वो भी मौकापरस्त लोगे ने मुझसे हथिया लिया और मैं पूरे रास्ते सर्दी से कांपता रहा जैसे कोई भीगी बिल्ली हो |
देवभूमि उत्तराखंड में हमारा प्रवेश
खैर , हम सभी 3:15 सुबह दिनांक 29-11-2008 को ऋषिकेश पहुच गए | यहाँ पर ठण्ड वास्तव में अनुमान के मुताबिक कही ज्यादा थी | कुछ सोने वाले सह-यात्रियों को अभी भी यह मालूम नही था कि देवभूमि उत्तरांचल, ऋषिकेश में पदार्पण कर चुके हैं | जैसे -तैसे उनको चाय पीने के लिए जगाया गया पर नीद तो जैसे उन पर हावी हो रखी हो..भगवान जाने कितना सोते है ये लोग ? सुबह की चाय की चुस्कियों का आनंद लिया थोड़ा फ्रेश हुए तब फिर हम चल पड़े अपने कर्मपथ पर |
ऋषिकेश से ३:३० पर चलने के बाद चंद्रभागा नदी पर बने पुल को पार करके हम प्रकृति के असीम सौन्दर्य पहाडो पर यात्रा का आनंद लेने लगे | कुछ दुरी तय करने के बाद हम श्री भद्रकाली मन्दिर के पास उत्तरांचल पुलिस के बने जाँच चौकी पर पहुचे वहा सभी वाहन रुके हुए थे क्यूंकि सुबह पॉँच बजे से पहले कोई भी वाहन सुरक्षा कारणों से इस जाँच चौकी से नही पार हो सकता |
अब मैं और पुर्नेंदु भाई जी और मैं गाड़ी से उतर कर चौकी अधिकारी के पास गए और उनसे निवेदन किया हम दिल्ली से आये है और हमारी संस्था यंग उत्तराखंड को ओर से हम प्रतापनगर में फ्री मेडिकल कैम्प का आयोजन करवा रहे है और उनको यह अवगत करवाया की हमारा सुबह ८ बजे प्रतापनगर पहुचना बहुत आवश्यक है | जांच अधिकारी बहुत भला आदमी था हमारी बातो को उन्होंने समझा और गंभीरता से निर्णय लेकर हमारी जाँच कर हमें जाँचचौकी पार करने का मौका दिया | वैसे भी स्पेशल डयूटी वाले हमारे पुर्नेंदु भाई जी हमारे साथ थे तो हमें किस बात का डर था |
अब हम ५.१० पर चम्बा के नजदीक सेलुपनी पहुच गए | ठण्ड के मारे सभी का बुरा हाल था , सेलुपनी पहुच कर अब हमारे अध्यक्ष महोदय जी को जंगल जाने (पेट खाली करने) की सूझी | वहा के लोगो ने बताया की आजकल यहाँ पर आदमखोर बाघ (मन्ख्या बाघ ) का आतंक है सो मैं, पंवार जी और पांथरी जी भी उनके साथ हो लिए (उनके अंगरक्षक बन कर) हमने सोचा की उनका अकेला जंगल जाना ठीक नही है | बड़ी मुश्किल से साहब जी का पेट खाली हुआ तो हम अब अपनी आगे की यात्रा को पूरा करने की लिए निकल पड़े |
अब हम ठीक ५.४५ पर चम्बा पहुच गए | चम्बा में एक और सदस्य श्री बलबीर राणा जी मेडिकल कैम्प में जाने हेतु हमारी प्रतीक्षा बस अड्डे पर कर रहे थे | हमने उनको अपने साथ लिया और हम अब निकल पड़े |
रस्ते में जगह जगह सड़क टूटी हुई थी, सड़कों में बड़े बड़े गड्ढे थे | मेरे, विपिन भाई जी और राणा जी के थिचोड़- थिचोड़ (उछल-उछल) के बुरे हाल हो गए थे |
भोर हो चुकी थी , देवभूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा चारो ओर बिखरी हुई थी | चिड़िया भी अपना प्रात:काल का गुंजन कर रही थी चारो ओर वातावरण में सुगन्धित महक बिखरी हुई थी जो की मन-मष्तिष्क में घर कर रही थी | ऐसा नजारा देख कर रास्ते के सारी थकान मनो उतर सी गई हो |
सहसा किसी सदस्य के खुरापाती दिमाग में एक आइडिया आया की हम टिहरी डैम के ऊपर बनी रोड से जायेगे, यदि हम इस रोड से जा पाते तो हमें करीब २५ किलोमीटर की यात्रा काम करनी पड़ती , लेकिन यहाँ पर मैं आप सभी को बताना चाहूँगा की टिहरी डैम के ऊपर बनी रोड से केवल तभी जा सकते है जब आप के पास किसी राजकीय अधिकारी या टिहरी डैम के किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा जरी किया गया पास या आज्ञा पत्र हो | वो हमारे पास तो नही था ,हमारे पास तो थे बस एक स्पेशल डयूटी वाले ऑफिसर (हमारे पुर्नेंदु भाई ) जैसे कैसे कर उनको जगाया गया, वो सुरक्षा गार्ड के पास गए तो उसने पास न होने के आभाव में हमें वहा से नही जाने दिया | हमने फिर डैम के आसपास के कुछ नजरो को अपने कैमरे में कैद किया और निकल पड़े प्रतापनगर की ओर |
करीब ७.४५ पर हम पीपलडाली पहुचे | हमें कैम्प में देरी का अंदेशा सताने लगा सो हमें पीपलडाली में बिना जलपान किए आपनी यात्रा आगे बढाई | पीपलडाली का लगभग ५०० मीटर झुला-जीप-पुल पार करने के बाद हम टिहरी झील के दूसरी ओर आ गए | यहाँ से यह रोड़ धारकोट होते हुए प्रतापनगर को जाती है | यह मार्ग बहुत ही संकरा और दुर्गम है | पीपलडाली से १५ किलोमीटर सड़क ठीक ठाक है परन्तु उसके बाद तो जैसे सड़क नही खड़ीन्जा वाली सड़क आ गई हो | फिर क्या था शुरू हो गई हमारी थिचोडम थिचोडाई | जैसे तैसे हम अपना सफर करते हुए प्रतापनगर पहुचे |
हमारे साथ गए एस्कोर्ट हास्पिटल के चिकित्सक -दल के रहने व खाने पीने की व्यस्था धारकोट के एक होटल में की गई थी | धारकोट से प्रतापनगर गाड़ी से ३० मिनट का रास्ता है |
प्रतापनगर में टीम का आगमन
हम सुबह 10.15 बजे सभी विपिन जी के घर पहुचे | वहा से प्रतापनगर हास्पिटल करीब ५ किलीमीटर है ,यही पर मेडिकल कैम्प का आयोजन किया जाना तय था | टीम की रहने, खाने-पीने की व्यवस्था सब इन्ही के घर में थी | मैं यहाँ पर विपिन जी के सभी घर वालो का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने ने हमें अपने बच्चो की तरह प्यार -दुलार व हमारा हर जरुरत का ख्याल रखा | विपिन पंवार जी की माताजी, पिताजी , बहिन व भुला की बुआरी ने (जो की ग्राम प्रधान है ) ने सबका बहुत ख्याल रखा | हमें ऐसा लगा जैसे हम अपने माता -पिता व भाई बहिनों के साथ अपने ही घर पर है | किसी भी टीम मैम्बर को किसी भी परेशानी का सामना नही करना पड़ा | विपिन जी के चचेरे भाई श्री राजपाल भाई जी और आशीष (जो की इस कोम्प के सबसे काम उम्र के कार्यकर्ता थे ) ने भी इस कैम्प में अपना हर सम्भव योगदान दिया | विपिन जी के समस्त परिवार वास्तव ने इस कैम्प को सफल बनाने में महतवपूर्ण भूमिका निभाई |
विपिन जी के घर पहुचने के बाद हम सभी फ्रेश हुए , तब तक रसोई से कोदे (मंडवा) की रोटी, हरी सब्जी , घी, और आलू के परोंठे परोस दिए गए | सभी ने बड़े चाव से खाया .....कैम्प में देर हो रही थी ....सबको जल्दी थी ....कुछ लोगो ने मुझे पूरा खाना भी नही खाने दिया .........खैर हम सड़क तक पैदल गए और अपनी गाड़ी में बैठ कर मेडिकल कैम्प के आयोजन स्थल को रवाना हो गए |
मेडिकल कैम्प में टीम का आगमन
हमारे साथ साथ एस्कोर्ट हास्पिटल का समस्त चिकित्सक दल भी पंहुचा | दिनांक २९-११-२००८ को कैम्प 11 बजे शुरू हुआ | वहा के स्थानीय कार्यकर्ताओ और प्रतापनगर हास्पिटल के स्टाफ ने कैम्प शुरू होने से पहले होने वाले सभी कार्य पूरे कर लिए थे |
स्वागत व शुभारम्भ
इस कैम्प के मुख्या अथिति ब्लाक प्रमुख श्री पूरनचंद रमोला जी ने जेयेष्ठ प्रमुख श्री राजेन्दर प्रशाद भट्ट , ग्राम प्रधान श्रीमती सीमा पंवार जी , प्रिंसिपल श्री सरोप सिंह पंवार जी, हमारे अध्यक्ष श्री पुर्नेंदु चौहान जी, डाक्टर पीयूष जैन जी व डाक्टर निशांत जी व अन्य यंग उत्तराखंड टीम की उपस्तिथि में अपने हाथो से रिब्बन काट कर तथा वैदिक मंत्रोच्चार व आरती वाचन कर मेडिकल कैम्प शुभारम्भ किया |
मेडिकल कैम्प में कार्यवाही
इसके बाद सब अपने अपने कामो में लग गए | श्रीमती पूनम चौहान जी व अशिशी पंथारी जी मरीजो का पंजीकरण का कार्य शुरू किया | वरिष्ठ चिकित्सक श्री पीयूष जैन जी ने अपने सहयोगी चिकित्सक श्री निशांत जी ने अलग अलग मरीजो की जाँच करनी शुरू की व उनकी समस्याओ को सुनकर उनका निदान किया | एस्कोर्ट हास्पिटल के प्रोग्राम ऑफिसर श्री संदीप गोदियाल जी ने इस मेडिकल कैम्प में सराहनीय योगदान दिया | भीतर के कमरों में कही मरीजो का ई. सी. जी. परीक्षण हो रहा था तो किसी कमरे में उनका इको- कार्डियो की जाँच हो रही थी | श्रीमती सौम्या व उनकी अन्य सहयोगी मरीजो का रक्तचाप नाप रही थी | रक्तचाप नाप के बाद सभी मरीज डाक्टर्स के पास अपना पर्चा ले कर जा रहे थे | डाक्टर की टेबल के समीप खड़े होकर मैंने, विपिन जी व बीनू भाई जी, पुर्नेंदु भाई ने मरीजो की पहाड़ी बोली को हिन्दी में डाक्टर्स को बता कर उनकी सहायता की |इस मेडिकल कैम्प में लगभग ३०० मरीजो की जाँच की गई तथा लाभान्वित हुए |
इस दिन हमने कैम्प का समापन लगभग सायं ४ बजे कर दिया | इसके बाद यंग उत्तराखंड कैम्प टीम ने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमारे सदस्य श्री धनी राम जोशी जी के गाव गए | उनसे मिल कर उन्हें सान्तवना व उनके मृतक परिजनों को श्रधान्जली दी व शोक संतप्त परिवार तथा जोशी जी को समझाया |
इसके बाद टीम लम्बगाव गई जहा हमने गाड़ी के लिए डीजल व रास्ते में हुए टायर के पंचर को ठीक करवाया |
वापिस आते समय हमने रास्ते में एक देसी मुर्गा पकड़ा जिसको हमने मांजफ गावं के एक होटल में बनवाया और उसको वही पर खाया | वहा से अब वापिस विपिन जी के घर को चले जहा पर हमारे रहने व खाने -पीने की व्यवस्था थी | रात का खाना खा कर हम सब सो गए |
मेडिकल कैम्प में कार्यवाही का अगला दिन
अगले दिन ३०-११-२००८ को सुबह तैयार हो कर हम सब फिर से प्रतापनगर चल पड़े | पहले दिन की भांति सब काम पूरा कर हम ने समापन समारोह का आयोजन किया | जिसमे विपिन पंवार जी ने एस्कोर्ट हास्पिटल के प्रमुख चिकित्सक श्री पीयूष जैन जी को स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत किया व इस कैम्प के सफल आयोजन के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद् किया | इसके बाद श्री विजय बुटोला जी ने के मुख्य अथिति ब्लाक प्रमुख श्री पूरनचंद रमोला जी को स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत किया व इस कैम्प के सफल आयोजन के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद् किया |

इसके बाद श्री विजय कुकरेती जी ने प्रिंसिपल श्री सरोप सिंह पंवार जी को स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत किया व इस कैम्प के सफल आयोजन के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद् किया |
इस दिन हमें कैम्प लगभग एक बजे संपन कर दिया | डाक्टर्स की टीम वापिस दिल्ली रवाना हो गई | अब हमारी टीम की मस्ती करने का समय था सो पहले हम प्रतापनगर के राजा श्री प्रताप शाह के असंरक्षित महल, कोर्ट व अन्य सांस्कृतिक धरोहरों को देखने गए |
एक सच्चे उत्तराखंड क्रन्तिकारी से मुलाकात
कोर्ट के बाहर हमें एक वृद्ध सज्जन मिले जिनका नाम बिशनपाल सिंह "उत्तराखंडी" था | इन्होने हमें बताया की सन १९५० से ये प्रथक उत्तराखंड के माग को लेकर इन्होने कई आन्दोलनों में भाग लिया कई बार जेल की यात्राये की | लेकिन हमें तब बहुत बुरा लगा की आज उनके दोनों गुर्दे खरब हो चुके है और कोई भी उनकी सुध लेने को तैयार नही है | उनसे हमरी टीम की लगभग आधे घंटे बातचीत हुई उन्होंने हमें बताया की जिस उत्तराखंड का सपना हमने देखा था ये वो नही था | आज जो सच्चे उत्तराखंडी क्रन्तिकारी है उनका कही कोई जिक्र नही है और उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी राजकीय सहायता नही प्राप्त हो रही है | ये बड़े दुःख की बात है |
दिल्ली वापसी का सफर
इसके बाद हमने वापिस दिल्ली के लिए कुछ किया | प्रतापनगर में चलते समय मेरे खुरापाती दिमाग में एक विचार आया की क्योँ न हम सब प्रतापनगर से धारकोट पैदल जंगल से ट्रेकिंग कर के जाए ? परन्तु कुछ आलसी सदस्यों ने मन कर दिया फिर केवल बीनू भाई, विपिन जी, मनीष जी, आशीष भाई और मै ही पैदल जंगल के दुर्गम रास्तो से होते हुए ९ किलोमीटर पैदल यात्रा कर डेढ़ घंटे में धारकोट पहुचे ,जहा बाकी आलसी सदस्य हमारा इंतजार कर रहे थे वो भी सोते हुए |
हम पीपल डाली के लिए रवाना हुए वही पर हमने मच्छी-भात खाया | यहाँ पर भी हमारे आलसी साथियों ने मुझे भरपेट खाना नही खाने दिया और मैंने होटल वाले को एक हाथ से दिए और दुसरे हाथ से मछली की बोटी को खा रहा था ....चलते चलते | अब तक शाम के ६ बज चुके थे |
अब हम चम्बा ८.०० बजे पहेचे ,वापसी में हमने चम्बा में जलपान किया और निकल पड़े | वापिस फिर से सेलुपानी में पुर्नेंदु भाई का पेट ख़राब हो गया शायद वो मछली भात ज्यादा खा गए थे सो फिर उनके साथ जाना पड़ा ,जंगल में | ऋषिकेश हम १०.०० बजे पहुचे | मुजफ्फरनगर हम करीब रात १२.३० बजे खाना खाया फिर वापिस दिल्ली को चल पड़े | हम सब सुबह ३ बजे दिल्ली पहुच चुके थे | उसके बाद ड्राइवर ने सभी को उनके घरो पर छोड़ा |
इस प्रकार इस मेडिकल कैम्प सफलता पूर्वक संपन्न हुआ | हम सभी ने समाज सेवा के साथ साथ इस कैम्प में भरपूर आनंद लिया | मेरे जीवन में यह यात्रा सदा एक यादगार रहेगी |
मैं यहाँ पर उन सभी व्यक्तियों का धन्यवाद प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस सफलता पूर्वक संपन्न हुए कैम्प में अपना प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपना भरपूर योगदान दिया |
लेखक : विजय सिंह बुटोला
दिनांक 04-12-2008.
इस टीम में जाने वाले सदस्य थे
श्री पुर्नेंदु सिंह चौहान, श्रीमती पूनम चौहान, श्री विपिन पंवार, श्री विजय कुकरेती, श्री विजय सिंह बुटोला, श्री सुशील सेंदवाल , श्री मनीष कुमार, श्री आशीष पंथारी, श्री बलबीर राणा
कैम्प की तैयारी
मैंने 28-11-2008 को आफिस से छुट्टी ले ली थी | सारा दिन अपनी श्रीमती जी के साथ घर के काम-काज निपटाने के बाद मैंने रास्ते के लिए थोड़ा भोजन बनाने की तैयारी की | आलू उबाल के जख्या में छौंक लगा कर मैंने आलू के गुटके बनाये | आलू के गुटको को छौंकने के साथ साथ मैंने गौं की लाल मिर्च भी तली (भुन्टी मर्च)| मैंने भी अपनी श्रीमती जी के साथ पूरिया बनाई व् सलाद भी बनाया |
यात्रा का शुभारम्भ
जैसा की पूर्वनिर्धारित था की सब शाम 7:30 पर कश्मीरी गेट बस अड्डे पर एकत्रित होंगे | गाड़ी सभी को लेकर वही से जायेगी | सबसे पहले हमारे बीनू भाई जी शाम 7:00 बजे कश्मीरी गेट बस अड्डे पर पहुचे ,फिर विपिन भाई जी व् सुशील सेंद्वाल फिर मैं भी 7:15 पर पहुच गया | अब इंतजार था हमारे यंग उत्तराखंड की महान हस्ती महान लेट-लतीफ श्री श्री 108 पुर्नेंदु चौहान जी का , तो वो भी अपनी श्रीमती जी (श्रीमती पूनम चौहान जी ) व साथ में हमारे होने वाले भावी C.A साहब श्री मनीष कुमार जी के साथ ठीक 8:00 बजे पहुचे | वैसे तो ड्राइवर भी गाड़ी लेकर 8:10 पर आया था इसलिए साहब जी को बचने और बोलने का अच्छा मौका मिल गया था | इनकी प्रतीक्षा करते करते हम सभी के गले सूख गए थे सो हमने एक दो लीटर की कोक की बोतल ली और अपनी प्यास बुझाई | आप सब जानते हो दोस्तों , क्योंकि ये दिल मांगे मोर |
अब चली गाड़ी जिसमे सवार थे बीनू भाई जी और सुशील सेंद्वाल जी सबसे आगे ड्राइवर के साथ | बीच में हमारे साहब जी और मेमसाहब जी | पीछे की सीट पर हम बेचारे -हालात के मारे विपिन भाई और मैं |दिल्ली से चलने से पहले हमें गाड़ी में डीजल भरवाया फिर आशीष पंथारी जी ने हमें मोहननगर के गाजियाबाद -मेरठ रोड के मोड़ पर मिलना था सो हमने उनको वहा से 9:30 पर पिकप कर लिया | बेचारे पंथारी जी हमारा इंतजार वहा पर पिछले दो घंटे से कर रहे थे |
रास्ते में पहाड़ी गानों का आनंद लेते हुए हमने मुजफ्फर नगर तक का सफर काटा | मुजफ्फर नगर में हमने खाना खाया | जैसा की मैंने पहले बता की मैं भी घर से थोड़ा खाना लाया था और पुर्नेंदु भाई जी भी घर से मेथी के मजेदार परोंठे और नमकीन लाये थे सो हम सभी ने कुछ और खाने का आर्डर दे कर वह सब खाना मिल कर खाया |खाना खाकर हम गाड़ी में बैठे और अपने गंतव्य की ओर चल पड़े |
रास्ते की कठिनाइया
अभी थोडी दूर ही सफर तय किया था की मंगलौर के पास उत्तरांचल-उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर हम जाम में फँस गए | हमारे साथ कुछ इसे महानुभाव भी थे जिनको यह पता ही नही चला की हम दो घंटे से जाम में फंसे पड़े हैं .............क्योंकि वो तो सोने में मस्त थे | करीब दो घंटे के इंतजार के बाद जैसे -तैसे जाम खुला तो हम फिर अपनी आगे की शेष यात्रा को पुरा करने हेतु निकल पड़े | मेरी धर्मपत्नी जी ने जो कम्बल मुझे सर्दी से बचने के लिए दिया था वो भी मौकापरस्त लोगे ने मुझसे हथिया लिया और मैं पूरे रास्ते सर्दी से कांपता रहा जैसे कोई भीगी बिल्ली हो |
देवभूमि उत्तराखंड में हमारा प्रवेश
खैर , हम सभी 3:15 सुबह दिनांक 29-11-2008 को ऋषिकेश पहुच गए | यहाँ पर ठण्ड वास्तव में अनुमान के मुताबिक कही ज्यादा थी | कुछ सोने वाले सह-यात्रियों को अभी भी यह मालूम नही था कि देवभूमि उत्तरांचल, ऋषिकेश में पदार्पण कर चुके हैं | जैसे -तैसे उनको चाय पीने के लिए जगाया गया पर नीद तो जैसे उन पर हावी हो रखी हो..भगवान जाने कितना सोते है ये लोग ? सुबह की चाय की चुस्कियों का आनंद लिया थोड़ा फ्रेश हुए तब फिर हम चल पड़े अपने कर्मपथ पर |
ऋषिकेश से ३:३० पर चलने के बाद चंद्रभागा नदी पर बने पुल को पार करके हम प्रकृति के असीम सौन्दर्य पहाडो पर यात्रा का आनंद लेने लगे | कुछ दुरी तय करने के बाद हम श्री भद्रकाली मन्दिर के पास उत्तरांचल पुलिस के बने जाँच चौकी पर पहुचे वहा सभी वाहन रुके हुए थे क्यूंकि सुबह पॉँच बजे से पहले कोई भी वाहन सुरक्षा कारणों से इस जाँच चौकी से नही पार हो सकता |
अब मैं और पुर्नेंदु भाई जी और मैं गाड़ी से उतर कर चौकी अधिकारी के पास गए और उनसे निवेदन किया हम दिल्ली से आये है और हमारी संस्था यंग उत्तराखंड को ओर से हम प्रतापनगर में फ्री मेडिकल कैम्प का आयोजन करवा रहे है और उनको यह अवगत करवाया की हमारा सुबह ८ बजे प्रतापनगर पहुचना बहुत आवश्यक है | जांच अधिकारी बहुत भला आदमी था हमारी बातो को उन्होंने समझा और गंभीरता से निर्णय लेकर हमारी जाँच कर हमें जाँचचौकी पार करने का मौका दिया | वैसे भी स्पेशल डयूटी वाले हमारे पुर्नेंदु भाई जी हमारे साथ थे तो हमें किस बात का डर था |
अब हम ५.१० पर चम्बा के नजदीक सेलुपनी पहुच गए | ठण्ड के मारे सभी का बुरा हाल था , सेलुपनी पहुच कर अब हमारे अध्यक्ष महोदय जी को जंगल जाने (पेट खाली करने) की सूझी | वहा के लोगो ने बताया की आजकल यहाँ पर आदमखोर बाघ (मन्ख्या बाघ ) का आतंक है सो मैं, पंवार जी और पांथरी जी भी उनके साथ हो लिए (उनके अंगरक्षक बन कर) हमने सोचा की उनका अकेला जंगल जाना ठीक नही है | बड़ी मुश्किल से साहब जी का पेट खाली हुआ तो हम अब अपनी आगे की यात्रा को पूरा करने की लिए निकल पड़े |
अब हम ठीक ५.४५ पर चम्बा पहुच गए | चम्बा में एक और सदस्य श्री बलबीर राणा जी मेडिकल कैम्प में जाने हेतु हमारी प्रतीक्षा बस अड्डे पर कर रहे थे | हमने उनको अपने साथ लिया और हम अब निकल पड़े |
रस्ते में जगह जगह सड़क टूटी हुई थी, सड़कों में बड़े बड़े गड्ढे थे | मेरे, विपिन भाई जी और राणा जी के थिचोड़- थिचोड़ (उछल-उछल) के बुरे हाल हो गए थे |
भोर हो चुकी थी , देवभूमि के प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा चारो ओर बिखरी हुई थी | चिड़िया भी अपना प्रात:काल का गुंजन कर रही थी चारो ओर वातावरण में सुगन्धित महक बिखरी हुई थी जो की मन-मष्तिष्क में घर कर रही थी | ऐसा नजारा देख कर रास्ते के सारी थकान मनो उतर सी गई हो |
सहसा किसी सदस्य के खुरापाती दिमाग में एक आइडिया आया की हम टिहरी डैम के ऊपर बनी रोड से जायेगे, यदि हम इस रोड से जा पाते तो हमें करीब २५ किलोमीटर की यात्रा काम करनी पड़ती , लेकिन यहाँ पर मैं आप सभी को बताना चाहूँगा की टिहरी डैम के ऊपर बनी रोड से केवल तभी जा सकते है जब आप के पास किसी राजकीय अधिकारी या टिहरी डैम के किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा जरी किया गया पास या आज्ञा पत्र हो | वो हमारे पास तो नही था ,हमारे पास तो थे बस एक स्पेशल डयूटी वाले ऑफिसर (हमारे पुर्नेंदु भाई ) जैसे कैसे कर उनको जगाया गया, वो सुरक्षा गार्ड के पास गए तो उसने पास न होने के आभाव में हमें वहा से नही जाने दिया | हमने फिर डैम के आसपास के कुछ नजरो को अपने कैमरे में कैद किया और निकल पड़े प्रतापनगर की ओर |
करीब ७.४५ पर हम पीपलडाली पहुचे | हमें कैम्प में देरी का अंदेशा सताने लगा सो हमें पीपलडाली में बिना जलपान किए आपनी यात्रा आगे बढाई | पीपलडाली का लगभग ५०० मीटर झुला-जीप-पुल पार करने के बाद हम टिहरी झील के दूसरी ओर आ गए | यहाँ से यह रोड़ धारकोट होते हुए प्रतापनगर को जाती है | यह मार्ग बहुत ही संकरा और दुर्गम है | पीपलडाली से १५ किलोमीटर सड़क ठीक ठाक है परन्तु उसके बाद तो जैसे सड़क नही खड़ीन्जा वाली सड़क आ गई हो | फिर क्या था शुरू हो गई हमारी थिचोडम थिचोडाई | जैसे तैसे हम अपना सफर करते हुए प्रतापनगर पहुचे |
हमारे साथ गए एस्कोर्ट हास्पिटल के चिकित्सक -दल के रहने व खाने पीने की व्यस्था धारकोट के एक होटल में की गई थी | धारकोट से प्रतापनगर गाड़ी से ३० मिनट का रास्ता है |
प्रतापनगर में टीम का आगमन
हम सुबह 10.15 बजे सभी विपिन जी के घर पहुचे | वहा से प्रतापनगर हास्पिटल करीब ५ किलीमीटर है ,यही पर मेडिकल कैम्प का आयोजन किया जाना तय था | टीम की रहने, खाने-पीने की व्यवस्था सब इन्ही के घर में थी | मैं यहाँ पर विपिन जी के सभी घर वालो का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने ने हमें अपने बच्चो की तरह प्यार -दुलार व हमारा हर जरुरत का ख्याल रखा | विपिन पंवार जी की माताजी, पिताजी , बहिन व भुला की बुआरी ने (जो की ग्राम प्रधान है ) ने सबका बहुत ख्याल रखा | हमें ऐसा लगा जैसे हम अपने माता -पिता व भाई बहिनों के साथ अपने ही घर पर है | किसी भी टीम मैम्बर को किसी भी परेशानी का सामना नही करना पड़ा | विपिन जी के चचेरे भाई श्री राजपाल भाई जी और आशीष (जो की इस कोम्प के सबसे काम उम्र के कार्यकर्ता थे ) ने भी इस कैम्प में अपना हर सम्भव योगदान दिया | विपिन जी के समस्त परिवार वास्तव ने इस कैम्प को सफल बनाने में महतवपूर्ण भूमिका निभाई |
विपिन जी के घर पहुचने के बाद हम सभी फ्रेश हुए , तब तक रसोई से कोदे (मंडवा) की रोटी, हरी सब्जी , घी, और आलू के परोंठे परोस दिए गए | सभी ने बड़े चाव से खाया .....कैम्प में देर हो रही थी ....सबको जल्दी थी ....कुछ लोगो ने मुझे पूरा खाना भी नही खाने दिया .........खैर हम सड़क तक पैदल गए और अपनी गाड़ी में बैठ कर मेडिकल कैम्प के आयोजन स्थल को रवाना हो गए |
मेडिकल कैम्प में टीम का आगमन
हमारे साथ साथ एस्कोर्ट हास्पिटल का समस्त चिकित्सक दल भी पंहुचा | दिनांक २९-११-२००८ को कैम्प 11 बजे शुरू हुआ | वहा के स्थानीय कार्यकर्ताओ और प्रतापनगर हास्पिटल के स्टाफ ने कैम्प शुरू होने से पहले होने वाले सभी कार्य पूरे कर लिए थे |
स्वागत व शुभारम्भ
इस कैम्प के मुख्या अथिति ब्लाक प्रमुख श्री पूरनचंद रमोला जी ने जेयेष्ठ प्रमुख श्री राजेन्दर प्रशाद भट्ट , ग्राम प्रधान श्रीमती सीमा पंवार जी , प्रिंसिपल श्री सरोप सिंह पंवार जी, हमारे अध्यक्ष श्री पुर्नेंदु चौहान जी, डाक्टर पीयूष जैन जी व डाक्टर निशांत जी व अन्य यंग उत्तराखंड टीम की उपस्तिथि में अपने हाथो से रिब्बन काट कर तथा वैदिक मंत्रोच्चार व आरती वाचन कर मेडिकल कैम्प शुभारम्भ किया |
मेडिकल कैम्प में कार्यवाही
इसके बाद सब अपने अपने कामो में लग गए | श्रीमती पूनम चौहान जी व अशिशी पंथारी जी मरीजो का पंजीकरण का कार्य शुरू किया | वरिष्ठ चिकित्सक श्री पीयूष जैन जी ने अपने सहयोगी चिकित्सक श्री निशांत जी ने अलग अलग मरीजो की जाँच करनी शुरू की व उनकी समस्याओ को सुनकर उनका निदान किया | एस्कोर्ट हास्पिटल के प्रोग्राम ऑफिसर श्री संदीप गोदियाल जी ने इस मेडिकल कैम्प में सराहनीय योगदान दिया | भीतर के कमरों में कही मरीजो का ई. सी. जी. परीक्षण हो रहा था तो किसी कमरे में उनका इको- कार्डियो की जाँच हो रही थी | श्रीमती सौम्या व उनकी अन्य सहयोगी मरीजो का रक्तचाप नाप रही थी | रक्तचाप नाप के बाद सभी मरीज डाक्टर्स के पास अपना पर्चा ले कर जा रहे थे | डाक्टर की टेबल के समीप खड़े होकर मैंने, विपिन जी व बीनू भाई जी, पुर्नेंदु भाई ने मरीजो की पहाड़ी बोली को हिन्दी में डाक्टर्स को बता कर उनकी सहायता की |इस मेडिकल कैम्प में लगभग ३०० मरीजो की जाँच की गई तथा लाभान्वित हुए |
इस दिन हमने कैम्प का समापन लगभग सायं ४ बजे कर दिया | इसके बाद यंग उत्तराखंड कैम्प टीम ने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमारे सदस्य श्री धनी राम जोशी जी के गाव गए | उनसे मिल कर उन्हें सान्तवना व उनके मृतक परिजनों को श्रधान्जली दी व शोक संतप्त परिवार तथा जोशी जी को समझाया |
इसके बाद टीम लम्बगाव गई जहा हमने गाड़ी के लिए डीजल व रास्ते में हुए टायर के पंचर को ठीक करवाया |
वापिस आते समय हमने रास्ते में एक देसी मुर्गा पकड़ा जिसको हमने मांजफ गावं के एक होटल में बनवाया और उसको वही पर खाया | वहा से अब वापिस विपिन जी के घर को चले जहा पर हमारे रहने व खाने -पीने की व्यवस्था थी | रात का खाना खा कर हम सब सो गए |
मेडिकल कैम्प में कार्यवाही का अगला दिन
अगले दिन ३०-११-२००८ को सुबह तैयार हो कर हम सब फिर से प्रतापनगर चल पड़े | पहले दिन की भांति सब काम पूरा कर हम ने समापन समारोह का आयोजन किया | जिसमे विपिन पंवार जी ने एस्कोर्ट हास्पिटल के प्रमुख चिकित्सक श्री पीयूष जैन जी को स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत किया व इस कैम्प के सफल आयोजन के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद् किया | इसके बाद श्री विजय बुटोला जी ने के मुख्य अथिति ब्लाक प्रमुख श्री पूरनचंद रमोला जी को स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत किया व इस कैम्प के सफल आयोजन के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद् किया |

इसके बाद श्री विजय कुकरेती जी ने प्रिंसिपल श्री सरोप सिंह पंवार जी को स्मृति चिन्ह भेट कर उनका स्वागत किया व इस कैम्प के सफल आयोजन के लिए उनका हार्दिक धन्यवाद् किया |
इस दिन हमें कैम्प लगभग एक बजे संपन कर दिया | डाक्टर्स की टीम वापिस दिल्ली रवाना हो गई | अब हमारी टीम की मस्ती करने का समय था सो पहले हम प्रतापनगर के राजा श्री प्रताप शाह के असंरक्षित महल, कोर्ट व अन्य सांस्कृतिक धरोहरों को देखने गए |
एक सच्चे उत्तराखंड क्रन्तिकारी से मुलाकात
कोर्ट के बाहर हमें एक वृद्ध सज्जन मिले जिनका नाम बिशनपाल सिंह "उत्तराखंडी" था | इन्होने हमें बताया की सन १९५० से ये प्रथक उत्तराखंड के माग को लेकर इन्होने कई आन्दोलनों में भाग लिया कई बार जेल की यात्राये की | लेकिन हमें तब बहुत बुरा लगा की आज उनके दोनों गुर्दे खरब हो चुके है और कोई भी उनकी सुध लेने को तैयार नही है | उनसे हमरी टीम की लगभग आधे घंटे बातचीत हुई उन्होंने हमें बताया की जिस उत्तराखंड का सपना हमने देखा था ये वो नही था | आज जो सच्चे उत्तराखंडी क्रन्तिकारी है उनका कही कोई जिक्र नही है और उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी राजकीय सहायता नही प्राप्त हो रही है | ये बड़े दुःख की बात है |
दिल्ली वापसी का सफर
इसके बाद हमने वापिस दिल्ली के लिए कुछ किया | प्रतापनगर में चलते समय मेरे खुरापाती दिमाग में एक विचार आया की क्योँ न हम सब प्रतापनगर से धारकोट पैदल जंगल से ट्रेकिंग कर के जाए ? परन्तु कुछ आलसी सदस्यों ने मन कर दिया फिर केवल बीनू भाई, विपिन जी, मनीष जी, आशीष भाई और मै ही पैदल जंगल के दुर्गम रास्तो से होते हुए ९ किलोमीटर पैदल यात्रा कर डेढ़ घंटे में धारकोट पहुचे ,जहा बाकी आलसी सदस्य हमारा इंतजार कर रहे थे वो भी सोते हुए |
हम पीपल डाली के लिए रवाना हुए वही पर हमने मच्छी-भात खाया | यहाँ पर भी हमारे आलसी साथियों ने मुझे भरपेट खाना नही खाने दिया और मैंने होटल वाले को एक हाथ से दिए और दुसरे हाथ से मछली की बोटी को खा रहा था ....चलते चलते | अब तक शाम के ६ बज चुके थे |
अब हम चम्बा ८.०० बजे पहेचे ,वापसी में हमने चम्बा में जलपान किया और निकल पड़े | वापिस फिर से सेलुपानी में पुर्नेंदु भाई का पेट ख़राब हो गया शायद वो मछली भात ज्यादा खा गए थे सो फिर उनके साथ जाना पड़ा ,जंगल में | ऋषिकेश हम १०.०० बजे पहुचे | मुजफ्फरनगर हम करीब रात १२.३० बजे खाना खाया फिर वापिस दिल्ली को चल पड़े | हम सब सुबह ३ बजे दिल्ली पहुच चुके थे | उसके बाद ड्राइवर ने सभी को उनके घरो पर छोड़ा |
इस प्रकार इस मेडिकल कैम्प सफलता पूर्वक संपन्न हुआ | हम सभी ने समाज सेवा के साथ साथ इस कैम्प में भरपूर आनंद लिया | मेरे जीवन में यह यात्रा सदा एक यादगार रहेगी |
मैं यहाँ पर उन सभी व्यक्तियों का धन्यवाद प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस सफलता पूर्वक संपन्न हुए कैम्प में अपना प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपना भरपूर योगदान दिया |
लेखक : विजय सिंह बुटोला
दिनांक 04-12-2008.
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मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा मेरु मुलुक जग्वाल करणु ...
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बरसू का त्याग, प्रयास व् बलिदान का बाद हमुन 9 नवम्बर 2000 मा अपणु पृथक उत्तरांचल राज्य पाई | 1 जनवरी 2007 माँ स्थानीय लोगों की भावनाओं थैं ध...