मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा
घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा
अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा
घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा
अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा
मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू
कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलू
किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा
इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी
खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणी
हमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की
छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी
देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान
खाड़ जम्युं छ चौक माँ, कन बनी ग्ये हम सब अंजान
याद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन
कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंन
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