जब मैंने खुद अपना पहाड़ छोड़ दिया
क्यों कहूँ की पहाड़ क्यों छोड़ गए लोग
जब मैं ही ना रहा अपनी जन्मभूमि में
तो क्यों लगाऊं इल्जाम की पहाड़ को बिसर गए लोग।
पुरखों के संजोये घर की हर दीवार ढह गयी है अब
उसकी हर दरो-दीवार अब उठा ले गए लोग
निर्जन पड़े खंडहर में अब सूनेपन का बसेरा है।
कैसे कह दूं कि हाँ, उत्तराखंड में एक घर भी मेरा है।
शहरों की भागम भाग में नित एक चुभता सा सवेरा है।
याद पहाड़ की आती है, दुखी बहुत अंतर्मन मेरा है।
क्यों कहूँ की पहाड़ क्यों छोड़ गए लोग
जब मैं ही ना रहा अपनी जन्मभूमि में
तो क्यों लगाऊं इल्जाम की पहाड़ को बिसर गए लोग।
पुरखों के संजोये घर की हर दीवार ढह गयी है अब
उसकी हर दरो-दीवार अब उठा ले गए लोग
निर्जन पड़े खंडहर में अब सूनेपन का बसेरा है।
कैसे कह दूं कि हाँ, उत्तराखंड में एक घर भी मेरा है।
शहरों की भागम भाग में नित एक चुभता सा सवेरा है।
याद पहाड़ की आती है, दुखी बहुत अंतर्मन मेरा है।
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