जिंदगी कुछ यंन छा गुजन लगीं बीस हजार मां



जिंदगी कुछ यंन छा गुजन लगीं बीस हजार मां

Sunday, April 27, 2014


जिंदगी कुछ यंन छा गुजन लगीं बीस हजार मां
अपडु पहाड़ छोड़ी पड़यां यख दिल्ली बाजार मां
रैंणु- खाणु जुलम कन ह्वे गे इं महंगाई मां
गुजारू मुश्किल ह्वे अब कुटंमदारी दगड़ा मां

कुटमदारी बोल्दी क्या छन कन्ना तुम ये घर बार मां
दगड़ी का तुम्हारा घुमण लाग्यां लम्बी कार मां
तौंन त ल्याली बडू फ्लैट द्वारका अर जमनापार मां
हमुन क्या यखी पड़यूँ राण एक कमरा रस्वाड मां

मौंटी की बोई बोन्नी अबरी दां झुमका दिलवा मेरा जनम्बार मां
भौत फदै ली तुमुन मैं चली गैंन कई मैना-बार हाँ
मौंटी की मां बोन्नी साड़ी आयीं नया फैशन की बाजार मां
अलमारी भरी छा कपड़ों न पर ह्वे वू अब बेकार हाँ

बच्चा पढ्दा प्राइवेट स्कूल मां तौंका नाखरा हजार हाँ
आज यू प्रोजेक्ट भोळ वू ड्रेस चैन्दी बिना देर-अबेर मां
कन परेशान करी यूँ स्कूल वालु न ह्वे मैं बुखार हाँ
बांजा पोड़ जैली तौकी मवासी कांडा लगला तौकी मवार मां

रिश्तादारी माँ ब्यो कु खर्चा त कभी कुटमदारी की दवैय दारू माँ
निभौंण भी जरुरी पड़दा यी काम जिंदगी का जंजाल माँ
कर्जा भी कातना ल्यांण पुराणु भी चढ़यूँ अस्सी हजार हाँ 
ज्यू मारी मारी जु रुपया टक्की बचाई वू जैन धरु धार मां

नौना बोल्दा पापा चला मौल- बाज़ार मां
जिकुड़ी झुरी जांदी मेरी खर्चा हुंदू बेकार मां
कैन लिनी जुत्ता-सैंडिल त कैन कपड़ा चार हजार मां
फारमैश सब्भी पूरी करदू मैं ये परिवार मां

होंदी जु नौकरी सरकारी त होंदी खांदी रंदी मौउ –भग्यानी
प्राइवेट नोकरी कु क्या भरोसू कब भोळ सबेर छुटी जांदी
मात-पिता, गुरु इष्ट कु रयुं चैंदु आशीष सदानी
जन भी छौं सुखी संपन्न ही रे मेरी मौउ –भग्यानी


सर्वाधिकार सुरक्षित द्वारा : विजय सिंह बुटोला
दिनांक: अप्रैल २७, २०१४

Comments