Thursday, September 19, 2024

जिंदगी

करो ऐसा काम कि बन जाए एक पहचान
चलो हर कदम ऐसा कि बन जाए निशान
जिंदगी तो हर कोई काट लेता है यहां 
जियो जिंदगी ऐसे कि एक मिसाल बन जाए


इस खूबसूरत  जिंदगी से करो भरपूर प्यार
गर अभी है रात तो करो सुबह का इंतजार 
आशा है जिस सुखद पल आएगा जरूर  
रखो भरोसा और करो वक्त पर एतबार 


लड़कर जो वक्त से नसीब बदल दे,
वही है इंसान जो अपनी तकदीर बदल दे
कल क्या होगा कभी मत सोचो
पता किसे कल वक्त खुद अपनी तस्वीर बदल ले


मत उड़ इन हवाओं के भरोसे
चट्टाने रुख मोड़ देती हैं तूफानों का भी 
तू रख भरोसा अपने फैलाये पंखों पर 
के पतंगे उड़ा करती हैं हवाओं के भरोसे 


बेहतर से भी बेहतर की  करो तलाश
नदी मिल जाए  तो सागर  करो तलाश
पत्थर कि चोट से टूट जाता है शीशा भी 
शीशा तलाश लो ऐसा की टूट जाए पत्थर भी 


बहुत हसीन है जिंदगी 
हंसाती है कभी , तो कभी है रुलाती
लेकिन जो जिंदगी की भीड़ में खुश रहता है
जिंदगी उसी के आगे सिर झुकाती है।


बिना संघर्ष कोई महान नही होता,
बिना कुछ किए जय जय कार नही होता
जब तक नहीं पड़ती चोट हथौड़े की 
कोई पत्थर तब तक भगवान नहीं होता।

पुरुषार्थ (हिंदी कविता )

जीवन के इस कर्मपथ पर, बढ़ना है तुमको वीरों सा
राह में मुश्किलें आएँगी, ठोकर तो लगना निश्चित है
 
तुम अडिग रहो हिमालय सा, पुरुषार्थ को साध सकल
दिन हो चाहे तिमिर भयंकर, तुम योद्धा सा निर्भीक रहो
 
जीवन है संघर्षों का रण, इस रण में हर क्षण लड़ना है
द्वंद यहाँ है पग पग पर, इस द्वंद में तुम्हे विजय पाना है

संघर्षो के इस रण में भाग्य बदल दे जो अपना,
वक्त भी तस्वीर बदल देगा जब होगा तेरा दृढ सपना

डोल रही नौका जीवन के भंवर में, निराशाओं के भी ज्वार अपार 
छोर मिलगा तभी तुम्हे, रख थाम के हिम्मत की पतवार
 
जीवन की इन राहों में नित, आगे बढ़ते रहना है
हो हालातों की कैद में फिर भी, द्वंद विजय कर एक नया सवेरा लाना है

बिना संघर्ष कोई महान नही होता, बिना कुछ किए जय घोष नही होता
जब तक न पड़ती चोट हथौड़े की, कोई भी पत्थर तब तक भगवान नहीं होता
 
चट्टाने रुख मोड़ देती हैं तूफानों का भी, प्रतिपल रहे स्मरण लक्ष्य का
त्याग निराशा के अन्धकार को, देख कल का वो भानु तेरा है|

स्वरचित : विजय सिंह बुटोला

मैत की याद (गढ़वाली कविता )

मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा 
घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा 
अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा 

मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू 
कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलू
किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा 
इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी 
खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणी

हमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की 
छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी 

देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान 
खाड़ जम्युं छ चौक माँकन बनी ग्ये हम सब अंजान

याद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन 
कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंन

जिंदगी

करो ऐसा काम कि बन जाए एक पहचान चलो हर कदम ऐसा कि बन जाए निशान जिंदगी तो हर कोई काट लेता है यहां  जियो जिंदगी ऐसे कि एक मिसाल बन जाए इस खूबसू...