Thursday, September 19, 2024

पुरुषार्थ (हिंदी कविता )

जीवन के इस कर्मपथ पर, बढ़ना है तुमको वीरों सा
राह में मुश्किलें आएँगी, ठोकर तो लगना निश्चित है
 
तुम अडिग रहो हिमालय सा, पुरुषार्थ को साध सकल
दिन हो चाहे तिमिर भयंकर, तुम योद्धा सा निर्भीक रहो
 
जीवन है संघर्षों का रण, इस रण में हर क्षण लड़ना है
द्वंद यहाँ है पग पग पर, इस द्वंद में तुम्हे विजय पाना है

संघर्षो के इस रण में भाग्य बदल दे जो अपना,
वक्त भी तस्वीर बदल देगा जब होगा तेरा दृढ सपना

डोल रही नौका जीवन के भंवर में, निराशाओं के भी ज्वार अपार 
छोर मिलगा तभी तुम्हे, रख थाम के हिम्मत की पतवार
 
जीवन की इन राहों में नित, आगे बढ़ते रहना है
हो हालातों की कैद में फिर भी, द्वंद विजय कर एक नया सवेरा लाना है

बिना संघर्ष कोई महान नही होता, बिना कुछ किए जय घोष नही होता
जब तक न पड़ती चोट हथौड़े की, कोई भी पत्थर तब तक भगवान नहीं होता
 
चट्टाने रुख मोड़ देती हैं तूफानों का भी, प्रतिपल रहे स्मरण लक्ष्य का
त्याग निराशा के अन्धकार को, देख कल का वो भानु तेरा है|

स्वरचित : विजय सिंह बुटोला

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