क्या मिली ग्ये हम्थैं हमारू सुपिन्यो कु उत्तराखंड ?

बरसू का त्याग, प्रयास व् बलिदान का बाद हमुन 9 नवम्बर 2000 मा अपणु पृथक उत्तरांचल राज्य पाई | 1 जनवरी 2007 माँ स्थानीय लोगों की भावनाओं थैं ध्यान मे राखी थै उत्तराखंड कु नाम आधिकारिक तौर पर उत्तरांचल सी बदली कीं उत्तराखंड करी छोऊ |

आज जबकि उत्तराखंड एक अलग राज्य बणी ग्ये तब भी हम्थैं आज वू राज्य नि मिली जैकू सुपना हम सब्बी न मिल कर देखि थोऊ | आज उत्तराखंड आठ साल कु ह्वै गे पर विकास का नाम पर उत्तराखंड मा कुई भी खास प्रगति नि होई | पृथक राज्य की मांग हमुन अपना पहाड़ व् पहाड़ का लोगो का विकास खातिर करी थोऊ परन्तु आठ साल ह्वै गैन पहाड़ अभी भी विकास का खातिर तरसाणु च |

उत्तरांचल राज्य गठन सि पैली प्रस्तावित उत्तरांचल राज्य म 17 विधायक था जू अब बढ़ी कें 70 ह्वै गैन तथा 1 विकास मंत्री होन्दु थोऊ जू अब बढ़ी कें 12 ह्वै गैन परन्तु विकास का नाम पर कुछ खास काम नि च होण लग्युं | स्थानीय जनता का अनुसार उत्तरांचल राज्य का गठन का बाद असली विकास त केवल नेताओ और धनवान लोगो कु ह्वै गरीब त वखि का वखि रै गैन |उत्तराखंड कु विकास व राज्य की वर्तमान स्तिथि मूल्यांकन हेतु आज भी हमारी टक्क कई मुद्दों व विषयो पर लगी च जू की अभी भी जनता की नजरू म अधूरी छन |

आठ साल म तीन बार सरकार बणी आर बदली चार मुख्यमंत्री ह्वेन पर विकास कु मुद्दा केवल घोषणा पत्र का काला आखारो म हर्ची ग्ये | आज हमारा समणी उत्तराखंड का विकास सी सम्बंधित कई यक्ष प्रशन खड़ा छन होया जौंकू उत्तर का प्रति उत्तराखंड की जनता आज भी प्रतीक्षा म खड़ी च | कुछ जरुरी प्रश्न ये प्रकार सी छन |

पहाड़ म रोजगार का खातिर युवाओ कु पलायन कब रुकलु
पहाड़ म बेहतर शिक्षा प्रणाली कब लागु होली
पहाड़ म हर गौं तक सड़क कब जाली
पहाड़ म पर्यटन कु वास्तविक विकास कब होलू
पहाड़ म स्वास्थ्य सुविधा कब आली
गैरसैण राजधानी अस्तित्व म कब आली


सबसी पैली मैं यख बात पलायन कि करदू , आज उत्तराखंड का शिक्षित युवा वर्ग रोजगार का आभाव म अपनी जन्मभूमि सी पलायन करणा कें मजबूर छ ,करण केवल एक रोजगार का साधनों की कमी | मैं कखी पढ़ी थोऊ की पिछला 10 वर्षु मा पहाड़ सी 12 लाख सी भी ज्यादा लोग पलायन करी ग्येन | निरंतर पलायन सी विकास पर असर पड़ण लग्य्नु छ अगर हम केवल सांसद तथा विधायक निधि पर विशेषण करू त ये वजह सी पर्वतीय क्षेत्र थैं लगभग १६ करोड़ रूपए सालाना नुकसान होनु चा । ई औसत सी प्रदेश की 4 हजार करोड़ की मानक विकास योजना कि बात करी जाए त पर्वतीय क्षेत्र थैं साल भर माँ 30 करोड़ रूपयों की हानि होणि चा । निरंतर पलायन सी असर जनसँख्या पर भी पड़ी और हमारा राज्य मा जह्संख्या का हिसाब सी आठ विधान सभा की सीट कम ह्वै ग्येन | लगभग 40 करोड़ रूपये की वार्षिक विधायक निधि जू की यौं आठ विधानसभा सीटो थीं मिलदी वै सी हम सबी वंचित ह्वै गयौं | पहाड़ सी पलायन कु असर पर्वतीय क्षेत्रो थैं मिलण वाळी योजनाओ पर भी पड़लू | हालाकि मैदानी क्षेत्रो मा कुछ बड़ा उधमियो न अपना प्लांट स्थापित जरुर करी छन परन्तु तब भी पहाड़ का युवाओ थैं रोजगार का अवसर अभी भी गिन्या -चुन्या छन | जरुरत च एक मजबूत निति बनौन की जैसी उत्तराखंड का मूल निवासियों कें वखि रोजगार मिलो और पहाड़ का लोग पलायन का वास्ता मजबूर न हो सक्या |

उत्तरांचल राज्य गठन का बाद मैदानी भाग व पहाड़ी कस्बो मा शिक्षा का स्तर म सुधार अवश्य आई ,आज पर्वतीय शहरी क्षेत्रो मा कै जगह पब्लिक स्कुल भी खुलीं ग्ये लेकिन गरीब आदमी आज भी अपणा बच्चो कें वख नि पढै सकदु परन्तु राज्य का दूर दराज का पहाड़ी क्षेत्रो व गावो मा अभी भी शिक्षा कु स्तर नुय्नतम छ | राज्य का ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रो मा अभी भी कई विद्यार्थी अपना घर सी 5-6 किलोमीटर दूर स्कुल जांदा छन | स्कुलो मा शिक्षो व जरुरी संसाधनों की कमी छ | मैन कई बार यां भी देखि की स्कुल मा अध्यापक अपना कर्तव्य सी ज्यादा अपना होळ-तंगलू व घर का काम काज मा ज्यादा व्यस्त रंदा छन |शिक्षा की ही बात ली लयवा 250 सी भी ज्यादा गांवों का बच्चों थैं जूनियर हाई स्कूल माँ पढ़ना का वास्ता चार-पॉँच कि.मी. सी भी दूर जणू पड़दू | सरकारी आंकडो अनुसार 2500 का लगभग गांवों माँ सीनियर बेसिक स्कूल , 7500 का लगभग गांवों माँ सीनियर स्कूल व 3600 गावों का बच्चो थैं हायर सेकेण्डरी स्कूल चार-पॉँच कि.मी. सी भी दूर छ | अब हम सभी सिच सकदा छन की राज्य म बच्चो की शिक्षा कु विकास कन कै हो सकदु |सरकारी आंकडो का अनुसार राज्य गठन का आठ साल बाद भी उत्तराखंड राज्य माँ निरक्षरों की संख्या कुल 84 लाख की आबादी माँ सी 33 लाख 83 हजार 567 छ | यनी बेरोजगारों जनता की संख्या सात लाख तक ह्वै ग्ये |

अब मी बात प्रस्तावित राजधानी गैरसैण का मुद्दा पर करण चांदो जू की आज भी अधर म लटकी छ | परन्तु एक लंबा संघर्ष का बाद जब हमारी आँखी खुली त हमुन अपना सपुना बिखरदा देखि , राजधानी का नाम पर हम्थैं गैरसैण का बदला देहरादून देखणा कु मिली | यदि हम पहाड़ कु विकास चांदो त राजधानी भी पहाड़ म होई चैन्दि न की मैदानी भाग म | वन त राजधानी की घोषणा सन 1992 म उक्रांद नेता श्री कशी सिंह ऐरी जी ने करी थाई पर आज वर्तमान सरकार म सहभागी होणा का बाद भी उक्रांद आज अपणु वादू भूली ग्ये | सभी सरकारू का घोषणा पत्र म राजधानी कु मुद्दा विशेष मुद्दा थोऊ पर आज कुई भी पार्टी गैरसैण कें राजधानी नि बन्ये सकी |कैन या बात सच बोली च की राजधानी कु मुद्दा अब अंगद कु पाँव ह्वै गी जैके देहरादून सी हिलौंण असंभव छ |मैन एक लेख कखी पढ़ी थोऊ जैक अनुसार कि पर्वतीय राज्य की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र माँ ही होणी चैन्दि ताकि वाख का लोगु का उत्थान का वास्ता कार्य किए जा सकू | अगर जू पर्वतीय राज्य की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र माँ होली त येन सारा क्षेत्र कु विकास अफी ह्ववे होण लगलू । आज जू इस पहाड़ी क्षेत्र सी रोजगार की तलाश माँ पहाड़ सी पलायन च होण लग्य्नु वू ऐके रोकना माँ काफी कारगर सिद्ध होलू तबई लोग वाख रुकी सकदा | ऐकू समाधान कु एक तरीका और भि ह्वै सकदु जन कि हिमाचल तथा जम्मू कश्मीर का जन भी व्यवस्था ह्वै सकदी कि राजधानी छह माह गैरसैंण में राली और छह माह देहरादून माँ । ई युक्ति सी पहाड़ी क्षेत्र की उपेक्षा भि नि होली अर पहाड़ी राज्य की सार्थकता भी साकार सकदी | समय समय पर कै संगठन गैरसैण राजधानी का मुद्दा पर आन्दोलन व रैली करदा रंदा , सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र पूर्व से पश्चिम तक वर्तमान समय माँ अशांत होणु चा | भगवन जाणु कखी यु भि एक बदु जन आन्दोलन कु रूप न लिले और हुम्थें एकी भरी कीमत चुकाण पड़े । जैमा मात्र उत्तराखण्ड और हिमाचल द्वी राज्य छन जख अभी तक यन काली छाया नि पड़ी । जन मानस का मनु थैं शांत रखणा का नजरिया सी भी पर्वतीय क्षेत्र की राजधानी स्थायी रूप से आन्दोलन का प्रतीक मन्यि तथा प्रदेश की जनता माँ सर्वमान्य भाव सी स्वीकृत गैरसैंण थैं ही राजधानी बणोंण ठीक हुलु |


राज्य सरकार का आंकडा
उत्तराखण्ड राज्य स्थापना थैं आठ साल पुरा ह्वै गयेन | प्रदेश कि राज्य सरकार का अर्थ एवं संख्या विभाग का आंकड़ों का अनुसार प्रदेश माँ आज भि गरीबी की सीमा रेखा सी निस जीवन यापन करण वाल परिवारू की संख्या छ: लाख तेईस हजार 90 तक पहुंच ग्ये | राज्य गठन का समय ई संख्या तीन लाख 75 हजार का करीब थै । मतलब आज गरीबी दुगनी ह्वै ग्ये | उत्तराखण्ड की 3800 सि भी ज्यादा गाव घोर पेयजल संकट सी तथा १२ हजार सी भी ज्यादा गाव आंशिक पेयजल संकट सी जूझाणा छन | राज्य सरकार का आंकडा बातौंद छन कि उत्तराखंड राज्य का अस्तित्व माँ औण का बाद भी उत्तराखण्ड का कई गांवों माँ लोगों थैं एक भांडू पानी का खातिर कैए कोस दूर जणू पड़दू | यनी लगभग 8700 गांवों माँ ऐलोपैथिक अस्पताल भी पांच कि.मी. सी भी ज्यादा दूर छा | उत्तराखंड में सड़क मार्गो आज भी विकास कु बाटू देखणा छन | राज्य की कुछ सड़क बहुत अच्छी स्तिथि मा छन परन्तु ग्रामीण व दूर दराज का क्षेत्रो मा आज भी सडको की हालत बहुत ख़राब छ | हलाकि पिछला आठ वर्षु मा विभ्भिन सड़क योजनाओ का मध्यम सी बहुत गावो मा सड़क पौंची छ लेकिन डामरीकरण आज भी नि ह्वै | हम रोज सुणदा रंदा की आज फलाणी-फलाणी जगा दुर्घटना ह्वै ,कारण एक छ सड़क्यो की ख़राब हालत | आज भले ही उत्तराखंड मा गाव-गाव मा सड़क आगे होली परन्तु उनकू ढंग सी रखरखाव का आभाव मा हालत और भी ख़राब ह्वै ग्येन |2200 गांव यां छान जू कि आज भी पक्की सडक़ों सी दूर छान और उनमें लगभग 900 गांव यं छान जू कि सडक़ से 30 कि.मी. से अधिक दूर छन । 3000 गांवों माँ बस स्टाप आज भी पांच कि.मी भी ज्यादा दूर छा | रेलवे स्टेशन तो 15000 का लगभग गांवों की पहुंच सी दूर छा |

" उत्तराखंड में पर्यटन कु विकास आज भी लगी छ आस " आठ बर्शु बाद भी उत्तराखंड मा प्रस्तावित वीर चन्दरसिंह गढ़वाली पर्यटन विकास योजना ठीक ढंग सी कार्यान्वित नि ह्वै सकी | आज भी पर्यटन का विकास सी सम्बंधित कै व्यावहारिक दिक़्कतें समणी छन | विभ्भिन योजनाओ का अनुसार आज मात्र 10% ही काम पर्यटन का विकास का क्षेत्र मा होई 90% काम अभी भी बाकी चा | ई बात जग जाहिर छ की उत्तराखंड मा पर्यटन की सम्भावनाये आपर छन परन्तु सरकार ये मामला मा अभी जागरूक नि चा | यदि पर्यटन स्थलों कु विकास होलू और नई नई जगहों की खोज होली तभी उत्तराखंड मा पर्यटन कु विकास सम्भव छ | जब राज्य मा नए होटलों, झीलों, हवाई पट्टियों ,क्रीडा-स्थलों कु निर्माण सडको, मंदिरों व संस्कृतिक धरोहरों कु रख रखाव हुलु तभी सही अर्थो मा विकास सम्भव छ | पर्यटन का विकास होलू त रोजगार भी घररय्या बिरालु सी पिछने पिछने आलू |

उत्तरांचल मा आठ वर्षु बाद भी स्वास्थ्य सुविधाए न का बराबर छन हलाकि सरकार का प्रयास सी राज्य मा 108 एम्बुलेंस सेवा की शुरआत ब्लाक स्तर पर ह्वै छ परन्तु दूर दराज का पहाड़ी गाव आज भी यां सुविधाओ का आभाव मा मरणा छन | सरकार बेशक स्वास्थ्य सुविधाओ कु विस्तार की बात करू पर सच्ची बात सब जाँणदा की असल मा जरुरतमंद लोग अभी भी ये सुविधा का लाभ सी दूर छन | पहाड़ी क्षेत्रो मा भौत सी महिलाये प्रसव पूर्व उपचार का आभाव मा काल कु ग्रास बन जांदी | राजकीय चिकित्सालयों मा दवाइयों व डाक्टरों कु आभाव छ | स्वास्थ्य सुविधाओ कु विस्तार केवल शहर व कस्बो तक ही सीमित छ | उत्तराखंड की तक़रीबन समस्त अर खास कर ग्रामीण, गरीब और पहाड़ी जन समुदाय पूरी तरह सी सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर निर्भर छ और सरकार 50% अस्पतालों माँ डाक्टर उपलब्ध नि छ करै सक्नी । उतरांचल बणन सी पैली भी पहाड़ माँ सबसे बड़ी समस्या स्कूलों म शिक्षकों और अस्पतालों माँ डाक्टरों अर दवाई कि कमी कि वजह सी थै |

अगर हम सब अपना उत्तराखंड थैं वास्तव माँ विकसित, खुशहाल व प्रगतिशील बनौण चांदा त हम सभी थैं एकजुट ह्वै कें प्रयास करणु पड़ोलो | आज बड़ी खुशी की बात ई च की उत्तराखंड का लोग विभ्भिन क्षेत्रो मा तथा विभ्भिन गैर सरकारी संगठनो का माध्यम सी वखा का जन समुदाय का खातिर प्रयासरत्त छन व समाज सेवा मा अपनी भागीदारी निभौना छन | निष्कर्ष का तौर पर आज उत्तराखंड मा विकास कार्य होणु त छ पर मंद गति सी | विकास कार्य तभी तीव्र गति सी ह्वै सकदु जब हम सब जागरूक बणु तथा नियोजित योजनाओ पर नजर रख सक्या |

कुछ जरुरी कदम उठौन पडला तब जै कें कुछ प्रगति व विकास ह्वै सकदु |

रोजगार का क्षेत्र मा :- जन की पीली भी मैं लिखी की रोजगार का आभाव मा आज शिक्षित युवा वर्ग अपणी मिटटी छोड़ी कें शहर मा पलायन करना का वास्ता मजबूर छन | सरकार कें ये विषय पर रोजगार निति बनोंण पडली ताकि योग्यता का हिसाब सी सबु कें रोजगार उपलब्द ह्वै सकू |

कृषि का क्षेत्र मा :- हमारा पहाडो मा जमीन आज भी हम पारंपरिक खेती करदा छन | उत्तराखंड मा जलवायु और मिटटी जैविक व आधुनिक खेती का वास्ता अति उत्तम चा |आज भी 90% लोग रासायनिक खाद कु उपयोग करणा का बजाय गोबर की खाद कु प्रयोग करदा छन | आज हम अगर फल, सब्जी, दाले, तिलहन, सोयाबीन, कपास, अदरक, हल्दी ,लहसुन, मशरूम, व जडी-बूटी की खेती करा त हम आत्म-निर्भर बणी सकदा | उत्तरांचल राज्य की विविध जलवायु तथा विभिन्न ऊंचाई वाला क्षेत्रों थैं ध्यान माँ राखि थैं सरकार न प्रदेश स्तर पर कृषिकरण का वास्ता करीब 26 महत्वपूर्ण प्रजातियों क्रमशः अतीस, कुटकी, कूठ, जटामांसी, चिरायता, वनककड़ी, फरण, कालाजीरा, पाईरेथ्रम, तगर, मंजीष्ठ, लेमनग्रास, बड़ी ईलायची, पत्थरचूर, रोजमेरी, जिरेनियम, सर्पगंधा, कलिहारी, सतावर, स्टीविंया, सीलिबम, पीपली, अमीमेजस, तिलपुष्पी, कैमोमाईल व ब्राम्ही चयनित की है | ई योजना का अंतर्गत कश्ताकारू थैं अनुदान भि दिए जालू |उंका उत्पाद की निकासी एवं विपणन थैं सुगम बनौन तथा प्रदेश स्तर पर डाटाबेस तैयार कारन का वास्ता काश्तकारों कु पंजीकरण की व्यवस्था भी करी च । ताकि आम जनमानस का साथ-साथ काश्तकारों कें भी वैकु समुचित लाभ मिली सकू |
अब देखा सरकार न त व्यवसायिक कृषिकरण द्वारा जड़ी-बूटियों का उत्पादन थैं बढ़ावा देण की दिशा माँ प्रयास शुरू करी छन , अब इ प्रयास कख लिजंदा आप भि देखिं |

पहाड़ मा पशुपालन, मतस्य पालन, मुर्गी पालन, मधुमख्खी पालन, जडी-बूटी व ओषिधि कृषि कु कार्य न का बराबर होन्दु |यदि ये क्षेत्र मा उचित मार्गदर्शन व सरकार द्वारा अनुदान देणा की योजनाओ कें सुलभ बनये जाऊ त यौन क्षेत्रो मा भी प्रगति ह्वै सकदी और स्व- रोजगार की सम्भावनाये भी उपलब्ध ह्वै सकदी | मैं कई जगा देखि की नेपाली लोग पहाड़ मा लुकारा पुन्गाडा मा व फल, सब्जी, दाले, तिलहन, सोयाबीन, कपास, मशरूम, व जडी-बूटी की खेती करी कें बहुत पैसा छन कमौना | यदि लोग भैर बीती अई कें हमारी जमीन पर आधुनिक खेती कर सकदा त हम किले नि कर सकदा ?

आज पहाड़ की हालत यां ह्वै गी की लोग देखण कु भी नि मिलदा | जू लोग वख छन (सरकारी कर्मचारियों छोड़ी कें ) वू भी कुछ कुछ खास काम नि करदा बस दिन भर ताश खेली रुमुकी दारू पीणा छा | वन त प्रधानमंत्री रोजगार योजना मा कध्यम सी आज लगभग सभी लोग विभ्भिन योजनाओ मा काम छन करणा परन्तु पहाड़ मा दारू कु दानव आज बहुत लोगु पर हावी च | अपनी सब करी -कमाई दारू मा छन उडौना | पहाड़ की महिला कु जीवन आज भी वखि छ जख पीली छा | आज पंचायती राज मा महिलाओ थैं हलाकि 50% की हिस्सेदारी छा परन्तु ऊन भी क्या कन्न अपणु घर कु काम कन्न या राजनीती मा योगदान देण | आज भले ही वर्तमान पंचायात चुनावु मा महिलाये 55% विजयी ह्वैन परन्तु पुरूष प्रधान समाज मा आज भी वो अपनी शशक्त आवाज नि उठाई सकदी | जरुरत च जागरूकता की ,महिलाओ थैं पुरु सम्मान व अधिकार देणा की |

पहाड़ का वास्तविक विकास तभी ह्वै सकदु जब पहाड़ की जनता जागरूक हो | सुचना कु अधिकार कु प्रयोग करी वो थैं अपनी ग्राम-पंचायत व सभी सरकारी योजनाओ का बारा मा पूछ सकदी ,जैकी की पहाड़ मा भरी कमी छा |

आज जरुरत छ निस्वार्थ भावः: व समर्पित भावः सी एकजुट ह्वै काम करणा कि तभी हम्थैं हमारू सुप्नियो कु विकसित व खुशहाल उत्तराखण्ड मिल सकदु जैकू सुपना हमुन व हमारा अमर शहीद भाई बैणी न देखि थूऊ |त आवा अपना समर्थ का अनुसार प्रयास करा अर अपना सुप्निया सच होंदा देखा |

जय बद्री बिशाल : जय उत्तराखण्ड
विजय सिंह बुटोला
दिनांक : 11-12-2008

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