दूसरा ब्यो कु विचार (गढ़वाली हास्य कविता )

दूसरा ब्यो कु विचार (गढ़वाली हास्य कविता )

एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ एक भयंकर विचार
की बणी जौँ मैं फिर सी ब्योला अर फिर सी साजो मेरी तिबार
ब्योली हो मेरी छड़छड़ी बान्द जून सी मुखडी माँ साज सिंगार
बीती ग्येन ब्यो का आठ बरस जगणा छ फिर उमंग और उलार

पैली बैठी थोऊ मैं पालंकी पर अब बैठण घोड़ी पकड़ी मूठ
तब पैरी थोऊ मैन पिंग्लू धोती कुरता अब की बार सूट बूट
बामण रखण जवान दगडा ,बूढया रखण घर माँ
दरोलिया रखण काबू माँ न करू जू दारू की हथ्या-लूट

मैन यु सोच्यु च पैली धरी च बंधी कै गिडाक
खोळी माँ रुपया दयाणा हजार नि खापौंण दिमाक
फेरो का बगत अडूनु मैन मांगण गुन्ठी तोलै ढाई
पर डरणु छौं जमाना का हाल देखि नहो कखी हो पिटाई

पैली होई द्वार बाटू ,बहुत ह्वै थोऊ टैम कु घाटू
गौं भरी माँ घूमी कें औंण, पुरु कन द्वार बाटू
रात भर लगलू मंड़ाण तब खूब झका-झोर कु
चतरू दीदा फिर होलू रंगमत घोड़ा रम पीलू जू

तब जौला दुइया जणा घूमणा कें मंसूरी का पहाडू माँ
दुइया घुमला खूब बर्फ माँ ठण्ड लागु चाई जिबाडू माँ

ब्यो कु यन बिचार जब मैन अपनी जनानी थैं सुणाई
टीपी वीँन झाडू -मुंगरा दौड़ी पिछने-२ जख मैं जाई
कन शौक चढी त्वै बुढया पर जरा शर्म नि आई
अजौं भी त्वैन जुकुडी माँ ब्यो की आग च लगांई

नि देख दिन माँ सुप्नाया, बोलाणी च जनानी
दस बच्चो कु बुबा ह्वै गे कन ह्वै तेरी निखाणी
मैं ही छौं तेरी छड़छड़ी बान्द देख मैं पर तांणी
अपनी जनानी दगडा माँ किले छ नजर घुमाणी

तब खुल्या मेरा आँखा-कंदुड़ खाई मैन कसम
तेरा दगडी रौलू सदानी बार बार जनम जनम

रचनाकर :- विजय सिंह बुटोला
दिनांक :- 15-12-2008


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