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जन्मभूमि रही पुकार

ऐ इंसान जरा तू ठहर

दूसरा ब्यो कु विचार (गढ़वाली हास्य कविता )

मेरी जन्मभूमि

मैत की याद

एक दिन की बारात कु हाल

मेरु क्या कसूर छा

जिंदगी कुछ यंन छा गुजन लगीं बीस हजार मां