मैत की याद



मैत की याद


मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा 
घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा 
मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू 
कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलू
अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा 
किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा 
इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी 
खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणी
हमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की 
छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी 
देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान 
खाड़ जम्युं छ चौक माँ, कन बनी ग्ये हम सब अंजान
याद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन 
कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंन

याद बौत औंदन वू प्यारा दिन जब होदू थौं

काली चाय मा गुडु कु ठुंगार 
पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार 
कोदा की रोटी पयाजा कु साग 
बोडा कु हुक्का अर तार वाली साज
चैता का काफल भादों की मुंगरी 
जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिंगोरी 
पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आम 
हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धाम
असुज का मैना की धन की कटाई 
बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई 
बल्दू का खंकार गौडियो कु राम्णु 
घट मा जैकर रात भरी जगाणु
डाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याट
डाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु सुन्सेयाट 
सौंण भादो की बरखा, बस्काल की कुरेडी 
घी-दूध की परोठी अर छांच की परेडी
हिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवाल
भैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रंदी जग्वाल 
चैता का मैना का कौथिग और मेला 
बेडू- तिम्लौ कु चोप अर टेंटी कु मेला
ब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु संग 
मस्क्बजा की बीन दगडा मा रणसिंग 
दासा कु ढोल दमइया कु दमोऊ 
कन भालू लगदु मेरु रंगीलो गढ़वाल-छबीलो कुमोऊ
बुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलार
आवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जावा तुम भी तैयार

रचियेता: विजय सिंह बुटोला
25-10-2008


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