Thursday, September 19, 2024

जिंदगी

करो ऐसा काम कि बन जाए एक पहचान
चलो हर कदम ऐसा कि बन जाए निशान
जिंदगी तो हर कोई काट लेता है यहां 
जियो जिंदगी ऐसे कि एक मिसाल बन जाए


इस खूबसूरत  जिंदगी से करो भरपूर प्यार
गर अभी है रात तो करो सुबह का इंतजार 
आशा है जिस सुखद पल आएगा जरूर  
रखो भरोसा और करो वक्त पर एतबार 


लड़कर जो वक्त से नसीब बदल दे,
वही है इंसान जो अपनी तकदीर बदल दे
कल क्या होगा कभी मत सोचो
पता किसे कल वक्त खुद अपनी तस्वीर बदल ले


मत उड़ इन हवाओं के भरोसे
चट्टाने रुख मोड़ देती हैं तूफानों का भी 
तू रख भरोसा अपने फैलाये पंखों पर 
के पतंगे उड़ा करती हैं हवाओं के भरोसे 


बेहतर से भी बेहतर की  करो तलाश
नदी मिल जाए  तो सागर  करो तलाश
पत्थर कि चोट से टूट जाता है शीशा भी 
शीशा तलाश लो ऐसा की टूट जाए पत्थर भी 


बहुत हसीन है जिंदगी 
हंसाती है कभी , तो कभी है रुलाती
लेकिन जो जिंदगी की भीड़ में खुश रहता है
जिंदगी उसी के आगे सिर झुकाती है।


बिना संघर्ष कोई महान नही होता,
बिना कुछ किए जय जय कार नही होता
जब तक नहीं पड़ती चोट हथौड़े की 
कोई पत्थर तब तक भगवान नहीं होता।

पुरुषार्थ (हिंदी कविता )

जीवन के इस कर्मपथ पर, बढ़ना है तुमको वीरों सा
राह में मुश्किलें आएँगी, ठोकर तो लगना निश्चित है
 
तुम अडिग रहो हिमालय सा, पुरुषार्थ को साध सकल
दिन हो चाहे तिमिर भयंकर, तुम योद्धा सा निर्भीक रहो
 
जीवन है संघर्षों का रण, इस रण में हर क्षण लड़ना है
द्वंद यहाँ है पग पग पर, इस द्वंद में तुम्हे विजय पाना है

संघर्षो के इस रण में भाग्य बदल दे जो अपना,
वक्त भी तस्वीर बदल देगा जब होगा तेरा दृढ सपना

डोल रही नौका जीवन के भंवर में, निराशाओं के भी ज्वार अपार 
छोर मिलगा तभी तुम्हे, रख थाम के हिम्मत की पतवार
 
जीवन की इन राहों में नित, आगे बढ़ते रहना है
हो हालातों की कैद में फिर भी, द्वंद विजय कर एक नया सवेरा लाना है

बिना संघर्ष कोई महान नही होता, बिना कुछ किए जय घोष नही होता
जब तक न पड़ती चोट हथौड़े की, कोई भी पत्थर तब तक भगवान नहीं होता
 
चट्टाने रुख मोड़ देती हैं तूफानों का भी, प्रतिपल रहे स्मरण लक्ष्य का
त्याग निराशा के अन्धकार को, देख कल का वो भानु तेरा है|

स्वरचित : विजय सिंह बुटोला

मैत की याद (गढ़वाली कविता )

मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा 
घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा 
अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा 

मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू 
कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलू
किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा 
इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी 
खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणी

हमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की 
छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी 

देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान 
खाड़ जम्युं छ चौक माँकन बनी ग्ये हम सब अंजान

याद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन 
कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंन

Friday, July 7, 2017

पलायन की व्यथा (हिंदी कविता )

जब मैंने खुद अपना पहाड़ छोड़ दिया
क्यों कहूँ की पहाड़ क्यों छोड़ गए लोग

जब मैं ही ना रहा अपनी जन्मभूमि में
तो क्यों लगाऊं इल्जाम की पहाड़ को बिसर गए लोग।

पुरखों के संजोये घर की हर दीवार ढह गयी है अब
उसकी हर दरो-दीवार अब उठा ले गए लोग

निर्जन पड़े खंडहर में अब सूनेपन का बसेरा है।
कैसे कह दूं कि हाँ, उत्तराखंड में एक घर भी मेरा है।

शहरों की भागम भाग में नित एक चुभता सा सवेरा है।
याद पहाड़ की आती है, दुखी बहुत अंतर्मन मेरा है।

Monday, December 19, 2016

जन्मभूमि रही पुकार (गढ़वाली कविता )

जन्मभूमि हमें हमारी है रही पुकार, कर रही चीत्कार
सूने पड़े है चहूँ खेत-खलिहान खाली है गौं-गुठियार
हैं निर्जन वो गलियाँ जंहा पथिको की थी कभी भरमार
राहें जाग रही है बाट जोहे, है उन्हें पदचिन्हों का इंतजार 

गिने चुने जन ही शेष है सन्नाटा पसरा हुआ है चहूँ ओर 
ताक रही है धरती ऐसे मानो की जैसे रुग्ण व्यक्ति ताके भोर
अविरल बहते नदी-नाले भी मुड़ गए अनजान राहों पर
जंगल-पहाड़ भी मौन खड़े है आँखे उनकी भी हैं तर 

खेतों-खलिहानों में भी अब बाँझपन कर चूका है घर
ये इनके वक्षो पर नमी नहीं है ये अश्रुओं से तर
फूलो ने भी महकना छोड़ा साथ ही फलों के वृक्ष भी हुए बाँझ
ये धरती भी करती है प्रतीक्षा तुम्हारे आने की प्रात: हो या साँझ 

घुघूती भी अब नहीं बासती आम की डालियों पर
कलरव छोड़ा चिडियों ने जैसे ग्रहण लगा हो इस धरा पर
जंगल और पहाड़ की आँखे लगी है उन राहों पर
घसेरियां जहा खुदेड़ गीत लगा याद करती थी अपना प्रियवर 

चैत महीने के कोथिगो व् मेलों की न रही वो पहिचान
धुल-धूसरित हुई संस्कृति खो गया कही लोककला का मान 
काफल-बुरांस के पेड़ अब लाली नहीं फैलाते नहीं हो रहे प्रतीत
सोचो तो जरा कभी क्योँ बिसराया हमने पहाड़ क्यों छोड़ी वो प्रीत
 
हे शैलपुत्रो बुला रही है ये धरती तुम्हे आओ करो इसका पुन: श्रंगार
चार दिन के इस जीवन में कभी तो समय निकालो दो इसको अपना प्यार 
ये जन्मभूमि हमारी माता है इसका हमसे अटूट नाता है
बिसर गए हैं हम इसको ये कैसी लीला विधाता है 

आओ लौट चले इसकी जीवनदायिनी गोद में
यही तो हमारी माता है |



ऐ इंसान जरा तू ठहर (हिंदी कविता)

ऐ इंसान जरा तू ठहर
जीवन कि इस दैनिक भागदौड़ में
इंसान का अपना वजूद खो गया है आशाओ के भंवर में
सब कुछ पा लेने कि चाहत में मशगुल है इस तरह
न चाहते हुए भी भूल गया है ख़ुद को खोजता है दुसरो के अक्स में

दिन भर व्यस्त रहकर मग्न है अपने काम में
फुरसत नही है दो जून लेने कि सुबह हो या शाम में
सपनों का संसार बुना है उसने अपने मन के ताने-बने में
जाने कब होंगे पूरे सपने उसके बात होती है हर अफसाने में

बेसुध इंसान पा लेना चाहता है हर उस मुकाम को
बाकि सब कुछ याद है भूल गया है बस आराम को
इस भागदौड़ में हर कोई इस कदर आगे पहुचना चाहता है
पाने को अपनी मंजिल कोई खून तो कोई पसीना बहाता है

न जाने कब मिटेगी इंसान कि ये तृष्णा और पिपासा
सच आता है जब सम्मुख रह जाता है फिर भी प्यासा

क्या लाया था इस जग में न दौड़ इस कदर
कर कर्म होगा सब मनचाहा ऐ इंसान जरा तू ठहर ....जरा तू ठहर

दूसरा ब्यो कु विचार (गढ़वाली हास्य कविता )

एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ एक भयंकर विचार
की बणी जौँ मैं फिर सी ब्योला अर फिर सी साजो मेरी तिबार
ब्योली हो मेरी छड़छड़ी बान्द जून सी मुखडी माँ साज सिंगार
बीती ग्येन ब्यो का आठ बरस जगणा छ फिर उमंग और उलार

पैली बैठी थोऊ मैं पालंकी पर अब बैठण घोड़ी पकड़ी मूठ
तब पैरी थोऊ मैन पिंग्लू धोती कुरता अब की बार सूट बूट
बामण रखण जवान दगडा ,बूढया रखण घर माँ
दरोलिया रखण काबू माँ न करू जू दारू की हथ्या-लूट

मैन यु सोच्यु च पैली धरी च बंधी कै गिडाक
खोळी माँ रुपया दयाणा हजार नि खापौंण दिमाक
फेरो का बगत अडूनु मैन मांगण गुन्ठी तोलै ढाई
पर डरणु छौं जमाना का हाल देखि नहो कखी हो पिटाई

पैली होई द्वार बाटू ,बहुत ह्वै थोऊ टैम कु घाटू
गौं भरी माँ घूमी कें औंण, पुरु कन द्वार बाटू
रात भर लगलू मंड़ाण तब खूब झका-झोर कु
चतरू दीदा फिर होलू रंगमत घोड़ा रम पीलू जू

तब जौला दुइया जणा घूमणा कें मंसूरी का पहाडू माँ
दुइया घुमला खूब बर्फ माँ ठण्ड लागु चाई जिबाडू माँ

ब्यो कु यन बिचार जब मैन अपनी जनानी थैं सुणाई
टीपी वीँन झाडू -मुंगरा दौड़ी पिछने-२ जख मैं जाई
कन शौक चढी त्वै बुढया पर जरा शर्म नि आई
अजौं भी त्वैन जुकुडी माँ ब्यो की आग च लगांई

नि देख दिन माँ सुप्नाया, बोलाणी च जनानी
दस बच्चो कु बुबा ह्वै गे कन ह्वै तेरी निखाणी
मैं ही छौं तेरी छड़छड़ी बान्द देख मैं पर तांणी
अपनी जनानी दगडा माँ किले छ नजर घुमाणी

तब खुल्या मेरा आँखा-कंदुड़ खाई मैन कसम
तेरा दगडी रौलू सदानी बार बार जनम जनम

रचनाकर :- विजय सिंह बुटोला
दिनांक :- 15-12-2008


मेरी जन्मभूमि (हिंदी कविता )

है जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान 
हम करे न्योछावर इसपर तन ,मन और प्राण 
इसके आस्तित्व से ही है हमारी पहचान 
बढे मिलकर हम यही हो बस मन में अरमान

हो संगठित और समर्पित इसे संवारे 
निस्वार्थभावः कर्म कर इसे निखारे 
चिर-यौवना रहे सदा ये धारा ऐसा कुछ विचारे 
हमारी यह धारा हमे निस दिन यही पुकारे

हे जन्मभूमि तुझे हम सर्वस्व अर्पण करे 
अभिलाषा है हमारी सर्व कर्म समर्पण करे 
है हमारे रक्त मे समाहित तेरी ही महक 
तेरे लिए कर्म करू ,कम है जो प्राण भी तरु

इस धारा के प्रताप पाई हमने जग मे पहचान 
निष्काम भाव से कर्म कर दे हम अपना योगदान 
इसकी माटी मे जन्मे बना हमारा आधार 
बिसराये इस धारा को यही है समय की पुकार


मैत की याद

काली चाय मा गुडु कु ठुंगार 
पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार 
कोदा की रोटी पयाजा कु साग 
बोडा कु हुक्का अर तार वाली साज

चैता का काफल भादों की मुंगरी 
जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिंगोरी 
पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आम 
हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धाम

असुज का मैना की धन की कटाई 
बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई 
बल्दू का खंकार गौडियो कु राम्णु 
घट मा जैकर रात भरी जगाणु

डाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याट
डाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु सुन्सेयाट 
सौंण भादो की बरखा, बस्काल की कुरेडी 
घी-दूध की परोठी अर छांच की परेडी

हिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवाल
भैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रंदी जग्वाल 
चैता का मैना का कौथिग और मेला 
बेडू- तिम्लौ कु चोप अर टेंटी कु मेला

ब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु संग 
मस्क्बजा की बीन दगडा मा रणसिंग 
दासा कु ढोल दमइया कु दमोऊ 
कन भालू लगदु मेरु रंगीलो गढ़वाल-छबीलो कुमोऊ

बुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलार
आवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जावा तुम भी तैयार

रचियेता: विजय सिंह बुटोला
25-10-2008


एक दिन की बारात कु हाल (गढ़वाली कविता )

एक बार दगडियो, मैके भी दिन दिन की बारात माँ जाणा कु मौका मिली
चल दगडियो का संग मन प्रसन्न मुखुडी को रंग तब खिली

झटपट हवे गे वरनारायण तैयार
पैरी वें सूट बूट आर टांगी कमर माँ तलवार
सड़की माँ गाड़ी थाई खड़ी मारनी छाई होरण
ढोल दमौं मसकबिन संग बाजणा था रणसिंघा-तोरण


बारात पहुची सड़की माँ सबुन अपनी सीट खुजाई
वरनारायण कु मामा आर दही की परोठी घर छुटी गयाई
चली ग्ये बारात डांडी-कंठियो माँ होण च गाड़ी कु सुन्स्याट
सभी पौणा बन्या चन दारू माँ रंग मस्त करना चन खिक्लीयाट


बारात ज़रा रुकी बीच बाजार 
दरौल्या पहुची ठेका माँ रुपया लेकी हजार
चल पड़ी गाड़ी कुई छुटी गे होटल माँ कुई छुटी धार पोर
दरोलिया दिदो कु त छोऊ बस बोतली पर शोर


बारात पहुची चौक माँ होण लगी गे स्वागत
कुई बैठी कुर्शी माँ कुई बैठी दरी माँ अर कुई बैठी छत
जवान छोरा खोजना छन, गलेर नौनी कुजणी कख हर्ची गे
बोलना छन की अब नि राये वू रंगत जू पैली छाई


बैठी पौणा पंगत माँ खाई उन काचू भात
दाल माँ लोण भिन्डी ह्व्वे गे अब बोन क्या बात
कखी नि मिली पानी कखी नि मिली सौंफ-मिश्री
हे हिमाला की हव्वे यु हम सब संस्कार बिसरी


बामण दीदा न पढ़ी सटासट अपना मंत्र
ब्यौला का कंदुड़ माँ वैन बोली तब यन्त्र
फेरा फेरी सरासर ब्यौली च रेस लगाणी
ब्यौला दीदा पिछने रेगे, ब्यौली नी छौंपी जाणी


पैटी बारात ब्यौली अब नी जयादा रोंदी दिखेंदी
डोला माँ बैठी जे ब्यौली बव्वे बुबा सबी मनौंदी
यन राइ दिदो मेरु एक दिनी की बारात कु हाल
सब कुछ सरासर हौंदु यख यनु बणी गे कुमॉऊ-गढ़वाल

मेरु क्या कसूर छा (गढ़वाली कविता)

रीति अर रिवाजो का नाम पर 
कुजाणी कब तल्क मिटणु रौलू मैं 
आंख्यो का आंसू पोंछी कें
मैं पूछी अपणी माँ थैं
किले दिनी त्वैन मैं बेटी कु जन्म
बोल मेरी माँजी मेरु क्या कसूर छा
जू मिली मैथै बेटी कु जन्म

क्या दर्द अर पीड़ा बनी कें रलू यो मेरु जीवन 
तेरी कोख मा ही नोऊ मैना पली चौं मैं 
ऐकें ईं धरती मा मैं भी त्वै सुख देलु 
माना कि ह्वौ जौलू मैं विराणी पर त्वै न बिसरौलू 

तू ही छा जू मेरी पीड़ा समज्दी
तिरस्कार भी झेली व झेली अपमान भी 
फिर भी दिनी त्वैन जन्म मैकै सारी सब पीड़ा 
वचन छा मेरु देलु सब सुख त्वै 

हे मानव बेटियौं कें न समझा अभिशाप 
औंण दयवा हम्कैं भी इन दुनिया मा 
हमारू भी आस्तित्व रण दियवा 
बेटियौं कें भी अपणु प्यार दियवा


Friday, January 31, 2014

जिंदगी आजकल (गढ़वाली कविता )


जिंदगी कुछ यंन छा गुजन लगीं बीस हजार मां
अपडु पहाड़ छोड़ी पड़यां यख दिल्ली बाजार मां
रैंणु- खाणु जुलम कन ह्वे गे इं महंगाई मां
गुजारू मुश्किल ह्वे अब कुटंमदारी दगड़ा मां

कुटमदारी बोल्दी क्या छन कन्ना तुम ये घर बार मां
दगड़ी का तुम्हारा घुमण लाग्यां लम्बी कार मां
तौंन त ल्याली बडू फ्लैट द्वारका अर जमनापार मां
हमुन क्या यखी पड़यूँ राण एक कमरा रस्वाड मां

मौंटी की बोई बोन्नी अबरी दां झुमका दिलवा मेरा जनम्बार मां
भौत फदै ली तुमुन मैं चली गैंन कई मैना-बार हाँ
मौंटी की मां बोन्नी साड़ी आयीं नया फैशन की बाजार मां
अलमारी भरी छा कपड़ों न पर ह्वे वू अब बेकार हाँ

बच्चा पढ्दा प्राइवेट स्कूल मां तौंका नाखरा हजार हाँ
आज यू प्रोजेक्ट भोळ वू ड्रेस चैन्दी बिना देर-अबेर मां
कन परेशान करी यूँ स्कूल वालु न ह्वे मैं बुखार हाँ
बांजा पोड़ जैली तौकी मवासी कांडा लगला तौकी मवार मां

रिश्तादारी माँ ब्यो कु खर्चा त कभी कुटमदारी की दवैय दारू माँ
निभौंण भी जरुरी पड़दा यी काम जिंदगी का जंजाल माँ
कर्जा भी कातना ल्यांण पुराणु भी चढ़यूँ अस्सी हजार हाँ 
ज्यू मारी मारी जु रुपया टक्की बचाई वू जैन धरु धार मां

नौना बोल्दा पापा चला मौल- बाज़ार मां
जिकुड़ी झुरी जांदी मेरी खर्चा हुंदू बेकार मां
कैन लिनी जुत्ता-सैंडिल त कैन कपड़ा चार हजार मां
फारमैश सब्भी पूरी करदू मैं ये परिवार मां

होंदी जु नौकरी सरकारी त होंदी खांदी रंदी मौउ –भग्यानी
प्राइवेट नोकरी कु क्या भरोसू कब भोळ सबेर छुटी जांदी
मात-पिता, गुरु इष्ट कु रयुं चैंदु आशीष सदानी
जन भी छौं सुखी संपन्न ही रे मेरी मौउ –भग्यानी


सर्वाधिकार सुरक्षित द्वारा : विजय सिंह बुटोला
Sunday, April 27, 2014

Friday, January 31, 2014

वर्तमान उत्तराखण्ड सिनेमा (टिपण्णी)

वास्तव में उत्तराखंड की वीडियो व सी डी फ़िल्म निर्माण की दुनिया अपने आपको फ़िल्म इंडस्ट्री कहलाने लायक मंच की वो पहली सीढियाँ भी नहीं चढ़ पाया है और इस क्षेत्र से जुड़े लोग अपने आपको आज के दौर का बहुत बड़ा कलाकार और निर्देशक बता रहे हैं मेरे व्यक्तिगत मतानुसार वे लोग ही यहाँ फ़िल्म निर्माण को गर्त में धकेलने के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार है | उसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि फ़िल्म निर्माण सम्बन्धी तकनीकी ज्ञान और जरूरती संसाधनों का हमारी इंडस्ट्री में अत्यधिक आभाव है | 


उत्तराखंड में बन रही वीडियो फिल्मे और वीडयो सी डी ने असल में उत्तराखंड में सिनेमा के बढ़ते हुए ग्राफ को अवरुद्ध किया है यहाँ यह कहना ठीक होगा की उसके बढ़ते कदमो को रोका है| यह बात तो सत्य है की जो भी लोग फिल्मे और सीडियाँ बना रहे है उनको उसकी वास्तविक लागत भी नहीं मिल पा रही है| उसके कई और बहुत से कारण है जो शायद अभी इस चर्चा की विषयवस्तु नहीं हैं | इसका सबसे बड़ा कारण है कि अनट्रेंड और अन्प्रोफेस्नल लोगो का जबरदस्ती यहाँ प्रवेश कर जाना जिन्हें फ़िल्म निर्माण का या तो तकनीकी ज्ञान नहीं है या उसके बारे में अल्प समझ रखते है| 


वास्तव में ये वही लोग हैं जिन्हें असल में फ़िल्म तो क्या पहाड़ और पहाड़ से जुडी परम्परा, लोक- संगीत और वाद्य यंत्रो का का भी पूरा ज्ञान भी नहीं है | आप किसी भी मंच पर कुछ गायक- गायिकाओ की सजीव प्रस्तुति को भी देख लीजिये, गायक-गायिकाओ के सुर, बोल और हाव भाव और व्यव्हार कही भी सच्ची उत्तराखंडी होना सा प्रतीत नहीं होते यही असल में वह पहली रूकावट है जो उत्तराखंड में भावी फ़िल्म निर्माण की संभावनाओ को धूमिल कर रही है | मैंने कही पढ़ा था की वास्तव में क्षेत्रीय फिल्मो का एक अपना चरित्र और अपनी एक यात्रा होती है जब भी वह अपने मार्ग से भटकती है तो वह हास्यपद बन जाती है | 



उत्तराखंड के कतिथ फ़िल्म निर्माता अभी जिस फ़िल्म निर्माण की परिपाटी से गुजर रहे है उस मानसिकता को तोड़ने की आवश्यकता है | जब तक उत्तराखंडी फिल्मो के निर्माण में वो परम्परागत टच नहीं आएगा और जब तक बालीवूड का जमा पहने उत्तराखंडी फिल्मो के प्रतिरूप में यहाँ परोसा जायेगा तब तक तो ये दशा नहीं सुधरने वाली और वो दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड सिनेमा अपना असली आस्तित्व खो देगा | १९७०-८० और ९० के दशक ने बनी फिल्मो के सामने आज की फिल्मे कही नहीं टिकती जबकि आज तकनीकी संसार बहुत बड़ा हो चुका है | यहाँ यह बताना जरुरी है की ये मेरे व्यक्तिगत विचार है किसी भी व्यक्ति से इसका सीधा सम्बन्ध नहीं है | क्यूंकि मैं भी एक दर्शक हूँ ....मूक दर्शक नहीं

Friday, January 16, 2009

कैरियर गाइडेंस कैम्प मानिला, अल्मोडा (उत्तराखंड)

यंग उत्तराखंड द्वारा आयोजित तीसरा कैरियर गाइडेंस कैम्प मानिला, अल्मोडा (उत्तराखंड) यंग उत्तराखंड द्वारा दिनांक 12 जनवरी 2009 को राजकीय इंटर कालेज मानिला , अल्मोडा (उत्तराखंड) में एक दिवसीय कैरियर गाइडेंस कैम्प का आयोजन किया गया यंग उत्तराखंड द्वारा आयोजित यह तीसरा कैरियर गाइडेंस कैम्प था इस कैम्प का मुख्य उद्देश्य कक्षा ग्यारहवी व बारहवी के विद्यार्थियों के स्कूली शिक्षा उतीर्ण करने के उपरान्त रोजगार प्राप्त करने व रोजगार के विभिन्न क्षेत्रो के बारे में जानकारी प्रदान करना था दिनांक 10 जनवरी 2009 को यंग उत्तराखंड के सदस्यों की टीम दिल्ली से राजकीय इंटर कालेज मानिला, अल्मोडा के लिए रवाना हुई यंग उत्तराखंड की ओर से इस कैम्प में जाने वाले सदस्य इस प्रकार थे: (1) श्री पुर्नेंदु सिंह चौहान (2) श्री ज्योति संग (3) श्री विवेक पटवाल (4) श्री विजय सिंह बुटोला (5) श्री नीरज बवाड़ी
कैम्प लिए टीम का दिल्ली से प्रस्थान : सबसे पहले कैम्प में जाने वाली गाड़ी ने श्री ज्योति संग व श्री नीरज बवाड़ी को फरीदाबाद से लिया और फिर रात 8।45 पर श्री पुर्नेंदु सिंह चौहान के घर पर उन्हें व श्री विजय बुटोला को लेने पहुची इंदिरापुरम से गाड़ी ने श्री विवेक पटवाल को लिया और इस प्रकार यंग उत्तराखंड के 5 सदस्यों की टीम मानिला के लिए रवाना हुई
टीम
का उत्तराखंड में प्रवेश
: अगले दिन (11-01-2009) रात तीन बजे हम रामनगर पहुचे जलपान आदि करने के बाद सभी सदस्य अपनी शेष यात्रा पुरी करने के लिए चल पड़े विश्व विख्यात जिम कोर्बेट वन्य जीव अभ्यारण से होते हुए हम प्रात: चार बजे मर्चुला पहुचे रास्ते में हम सभी जिम कोर्बेट वन्य जीव अभ्यारण के समीप स्तिथ माता गिरिजा देवी के दर्शनों के लिए गए किंतु मन्दिर के द्वार बंद होने की वजह से हम दर्शन नही कर सके और हमने यह निर्णय लिया की वापसी के समय हम दर्शन करने आएंगे
टीम
का मानिला में प्रवेश
: मर्चुला से मौलेखाल, पिपोला, बांगीधर और डोटियाल होते हुए सुबह 6 बजे टीम मानिला में श्री नीरज बवाड़ी जी के घर पहुची श्री ज्योति संग जी के रहने व खाने की व्यस्था श्री नीरज बवाड़ी जी के घर पर थी श्री पुर्नेंदु चौहान व श्री विजय सिंह बुटोला के रहने व खाने की व्यस्था श्री विवेक पटवाल जी के घर पर थी बाकी सदस्य श्री विवेक पटवाल जी के घर सुबह 7 बजे पहुचे नित्य कर्म से निवृत हो कर हम सभी ने नाश्ता किया और फिर अगले दिन होने वाले कैम्प की तैयारियों में जुट गए
टीम
का मानिला में भ्रमण
: टीम के सभी सदस्यों के दोपहर के भोजन की व्यस्था श्री नीरज बवाड़ी जी के घर पर ही थी हम दोपहर एक बजे श्री बवाड़ी जी के घर पहुचे और भोजन के उपरांत हम सभी मानिला देवी के शक्तिपीठ मल्ला मानिला पहुचे मल्ला मानिला के इस शक्तिपीठ के निर्माण से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है कहा जाता है की एक समय कुछ चोर माता के मन्दिर से उनकी अष्ट धातु की प्रतिमा चुराने गए पूरी प्रतिमा तो वे नही चुरा पाए परन्तु देवी का एक हाथ वे चुरा कर ले गए बहुत दूर चलने के बाद वे थक गए जब वे विश्राम करके उठे तो वे देवी के उस हाथ को नही उठा सके ,तब तक भोर हो चुकी थी किसी को पता चलने के डर से वे उसे वही छोड़ कर भाग गए बाद में स्थानीय लोगो ने वह पर माता मानिला के मन्दिर की स्थापना की , आज यह शक्तिपीठ मल्ला मनीला के नाम से जाना जाता है माता मानिला का प्राचीन शक्तिपीठ तल्ला मनीला नामक गाँव में है जिसे तल्ला मानिला माता शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है यह मल्ला मानिला माता शक्तिपीठ से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित है देवदार, चीड बाँज व बुरांस के जंगलो के बीच यह मन्दिर वास्तव में अनुपम है अनेको बुगयालो के बीच यह शक्तिपीठ देख कर आत्मा को चिर आनंद की अनुभूति होती है तथा माता के दर्शन पा कर भक्तगण मन की शान्ति व आशीष पाने का अनुभव करते है
माता मानिला के दोनी शक्तिपीठो के दर्शन कर श्री चौहान जी ,श्री पटवाल जी व श्री बुटोला जी राजकीय इंटर कालेज के प्राचार्य जी से अगले दिन होने वाले कैम्प के सिलसिले में मिलने गए प्राचार्य श्री जे। गौतम अवकाश पर थे तो हमने कार्यवाहक प्राचार्य श्री बी। एस. रावत जी से अगले दिन होने वाले कार्यक्रम की चर्चा की व उनको कैम्प में की जाने वाली तैयारियों व गतिविधियों के बारे में जानकारी दी शाम सात बजे हम श्री पटवाल जी के घर पर आ गए और रात्रि का भोजन कर हम सो गए
कैम्प
की कार्यवाही का आरम्भ
: अगले दिन (12-01-2009) सुबह 9 बजे हम राजकीय इंटर कालेज मानिला पहुच गए ड्राइवर को हमें श्री संग जी व श्री बवाड़ी जी के घर लेने भेज दिया सुबह दस बजे विद्यालय शुरू हुआ कार्यवाहक प्राचार्य श्री बी. एस. रावत जी से मुलाकात कर हमने उन्हें समस्त कार्यक्रम से पुनः अवगत करवाया कैम्प के दिन विद्यालय में फीस जमा करवाने का दिन था इस प्रकार यह ठीक बारह बजे आरम्भ हुआ इस कैम्प में १०२ विद्यार्थियों ने भाग लिया
टीम के सदस्यों द्वारा विद्यार्थियों को संबोधन : कैम्प की शुरुआत में श्री ज्योति संग जी ने विद्यार्थियों को संबोधित किया श्री ज्योति संग जी एक विद्वान ,लेखक, चिन्तक ,कवि, पत्रकार व कई भाषाओ के ज्ञाता है श्री संग जी ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में दक्षता हासिल करनी चाहिए तथा भविष्य के प्रति सचेत रहना चाहिए । उन्होंने प्रतिभागियों को सूचित करते हुए कहा कि शिक्षार्थियों को विविध क्षेत्रों में अपने ज्ञान को व्यावहारिक रूप देने का प्रयास करना चाहिए उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को कंप्यूटर, पत्रकारिता व अपनी रूचि विशेष समर्थित रोजगारों की खोज करनी चाहिए तथा इस दिशा में हर सम्भव प्रयास करना चाहिए । उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में फ्रेंच ,जर्मन और अन्य विदेशी भाषाओ को जानने वाले पेशेवरों की काफी कमी है जबकि हमारे देश व अन्य देशों में ऐसे रोजगारों की भरमार है ।
इसके बाद श्री नीरज बवाड़ी ने सभी विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें प्रशासनिक सेवाओ में रोजगार के लिए क्या-क्या तैयारिया और प्रयास करना चाहिए
विद्यार्थियों के लिए प्रतियोगिता का आयोजन : श्री ज्योति संग व श्री नीरज बवाड़ी के संबोधन के बाद एक सामान्य ज्ञान व रोजगारोंन्मुख विषयों से सम्बंधित प्रश्नों पर आधारित एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया इस प्रतियोगिता में सभी १०२ छात्र-छात्राओ ने भाग लिया
प्रतियोगिता में पुरुस्कार पाने वाले विद्यार्थी इस प्रकर से थे:
1. दीपक गहतोड़ी (कक्षा XII-B)(प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया) (४००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
2. रजनीकांत नैनवाल (कक्षा XII-B ) (प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया) (४००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
3. रोहित बवाड़ी (कक्षा XII-B ) (प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त किया) (४००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
4. प्रकाश चंद लाखचौरा (कक्षा XII-B ) (प्रतियोगिता में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया) (३००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
5. कुमारी अंशु सिंह (कक्षा XII-B ) (प्रतियोगिता में पंचम स्थान प्राप्त किया) (३००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
6. धर्मेश गहतोड़ी (कक्षा XII-B ) (प्रतियोगिता में षष्टम स्थान प्राप्त किया) (३००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
7. नवीन गहतोड़ी (कक्षा XII-B ) (प्रतियोगिता में सप्तम स्थान प्राप्त किया) (३००/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया)
नकद पुरस्कार, प्रमाण-पत्र व स्मृति चिन्ह वितरण समारोह :इस प्रतियोगिता में प्रथम, द्वितया व तृतीय श्रेणी पाने वाले हर छात्र को यंग उत्तराखंड कि ओर से एक स्मृति चिन्ह, एक प्रमाण पत्र और चार सौ रूपये की नकद पुरस्कार दी गई इस प्रतियोगिता में चार अन्य विद्यार्थियों को सान्तवना पुरस्कार स्वरुप एक प्रमाण-पत्र और चारों को तीन सौ रूपये का नकद पुरस्कार दिया गया इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले अन्य सभी विद्यार्थियों को उत्साहवर्धन स्वरुप एक-एक प्रमाण पत्र दिया गया
इसके बाद श्री पुर्नेंदु सिंह चौहान जी ने विद्यार्थियों को संबोधित किया उन्होंने विद्यार्थियों को बताया की को सरकारी नौकरी कैसे प्राप्त करे व कैसे इसकी तैयारिया करे
कैम्प का समापन और वापसी : श्री ज्योति संग द्वारा विद्यार्थियों में लड्डू व बिस्किट वितरित किए गए इस यंग उत्तराखंड द्वारा एक और सफल कैम्प का आयोजन संपन्न हुआ 12-01-2009 शाम को यंग उत्तराखंड की टीम दिल्ली के लिए वापसी का सफर तय करने के लिए मानिला से रवाना हुई रास्ते में रामनगर के समीप माता गिरिजा देवी के शक्तिपीठ के दर्शनों को आतुर टीम के सभी सदस्यों ने इस शक्तिपीठ में जाकर माता का दर्शन किया और आशीर्वाद प्राप्त किया रास्ते में रामनगर बाजार में रात 8 बजे रात्रि भोज करने के उपरांत के सभी सदस्य अपनी शेष यात्रा के लिए चल पड़े
टीम का दिल्ली आगमन : गाड़ी ने श्री विवेक जी को उनके इंदिरापुरम स्थित आवास पर रात 2.:30 पर छोड़ा और शेष टीम रात्रि 3 बजे दिल्ली पहुची वंहा से श्री ज्योति संग व श्री नीरज बवाड़ी को फरीदाबाद स्थित आवास पर छोड़ते हुए नेताजीनगर में श्री पुर्नेंदु चौहान को प्रात: 4 बजे उनके आवास पर छोड़ा तथा बाद में श्री विजय बुटोला को नांगलोई स्थित उनके आवास पर प्रात: 4:30 पर छोड़ा श्री विजय बुटोला ने ड्राईवर को गाड़ी के किराये का भुगतान किया और ड्राईवर को विदा किया
इस प्रकार यंग उत्तराखंड द्वारा आयोजित यह तीसरा कैरियर गाइडेंस कैम्प का सफल समापन किया यंग उत्तराखंड इस कैम्प में भाग लेने वाले सभी सदस्यों का आभार प्रकट करती है जिन्होंने अपना अमूल्य समय निकल कर इस कैम्प के सफल समापन में अपना उत्कृष्ट योगदान दिया यंग उत्तराखंड उन सभी अन्य साथियो का भी आभार प्रकट करती है जो कि प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से इस जन-कल्याण कार्यक्रम में सहभागी बने
भवदीय, विजय सिंह बुटोला पब्लिक रिलेशन ऑफिसर यंग उत्तराखंड (पंजीकृत)

जिंदगी

करो ऐसा काम कि बन जाए एक पहचान चलो हर कदम ऐसा कि बन जाए निशान जिंदगी तो हर कोई काट लेता है यहां  जियो जिंदगी ऐसे कि एक मिसाल बन जाए इस खूबसू...